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________________ द्वितीय अध्ययन : मृषावाद-आश्रव अर्थ मेल भी किया जाता है। अतः 'असत्यसंधत्व' शब्द का अर्थ हुआ—जिस वचन में असत्य अभिप्राय निहित हो, अथवा जो असत्य प्रतिज्ञा से युक्त वचन हो, या असत्य से मेल खाता हुआ वचन हो। जिस वचनप्रयोग के पीछे अभिप्राय गलत हो, वह वचन जनहितकर न होने के कारण असत्य है। कई व्यक्ति खराब दृष्टिकोण से किसी के प्रति व्यंग्य या ताने के रूप में वचनप्रयोग करना भी परपीड़ाजनक होने से असत्य में ही शुमार है । जैसे किसी व्यभिचारी से कहना कि 'आइए, महात्मन् !' किसी अपकारी से या किसी सेठ से अपना मतलब गांठने के लिए चापलूसी या खशामद भरे मीठे वचन बोलना भी असत्यसंधत्व है। क्योंकि किसी की चापलूसी करते समय उस व्यक्ति में जो गुण नहीं हैं, उनको भी बढ़ा-चढ़ा कर कहा जाता है। जैसे कई भाट या कवि लोग राजाओं की विरुदावलियाँ या यशोगाथाएँ गाते समय पुरस्कार पाने के लालच से कहते थे- आप इन्द्र हैं, आप वरुण हैं, आप कुबेर हैं, आप सूर्य के दूसरे अवतार हैं, आदि । ऐसी चाटुकारी करते समय व्यक्ति स्वार्थ या लोभ में आकर उसके वास्तविक गुणों-अवगुणों का विचार नहीं करता, इसलिए ऐसे वचन या विपरीत दृष्टिकोण से कहे गए वचन असत्यभित होने से असत्य ही हैं। इसी प्रकार असत्य से सम्बन्धित या मेल खाने वाले वचन कहना भी असत्यसंधत्व है । क्योंकि ऐसे वचनों में सत्य नहीं होता, केवल सत्य का आभास होता है । इसलिए ऐसे सत्याभासी वचन भी असत्यसंधत्व में आ जाते हैं। इसी तरह असत्य प्रतिज्ञा लेना भी असत्य संधत्व है । कई दफा व्यक्ति आवेश में आकर प्रतिज्ञा तो ले बैठता है, किन्तु उसका पालन नहीं करता। अथवा प्रतिज्ञा भी लेता है तो केवल दिखावे के लिए या झूठे आश्वासन देने के लिए। उसका पालन नहीं करता या उस पर दृढ़ नहीं रहता। बात-बात में तोड़ बैठता है। कई लोग संकल्प करते हैं, लेकिन जरा-सा कोई दबाव पड़ा या लोभ आया, अथवा स्वार्थ ने मुंह खोला, भय अथवा आफत ने घेरा डाला कि संकल्प से हट गए, तोड़ डाला संकल्प को ! इसी प्रकार किसी को कोई वचन देकर उसका पालन न करना भी असत्यसंधत्व है। ये सब प्रकार असत्य में गतार्थ हो जाते हैं, इसीलिए असत्य के ही साथी हैं। विवक्खो--जो वचन सत्य और सिद्धान्त का या धर्म और पुण्य का विपक्ष है-विरोधी है, वह विपक्ष नामक असत्य है। सिद्धान्त और सत्य के विरुद्ध वचन भी वास्तव में असत्य रूप हैं। इसलिए विपक्ष में असत्य का आश्रय होने से वह भी असत्य का अनुचर ही है। जैसे कई नास्तिक लोग कह देते हैं कि 'स्वर्ग नरक नही हैं, ये सब कोरी कपोलकल्पनाएँ हैं।' यह वचन सत्य और सिद्धान्त से विपरीत होने से विपक्ष असत्य है। इसी प्रकार अनेकान्त सिद्धान्त को छोड़कर सिर्फ
SR No.002476
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1973
Total Pages940
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size21 MB
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