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श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र
उच्छेद, दूसरों के कल्याण का नाश निहित है, वह वचन असत्य है । इसलिए निकृति को भी असत्य की सहचारिणी बताया गया है।
अपच्चओ-अप्रतीतिजनक वचन अप्रत्यय नामक असत्य कहलाता है । किसी के वचन के प्रति अप्रतीति तब होती है, जब पहले कई बार कहे हुए वचनों का पालन उसने न किया हो । एक बार जब किसी के बचनों पर लोगों को अप्रतीति या अविश्वास हो जाता है तो सहसा उसके वचनों पर पुनः प्रतीति नहीं होती, विश्वास नहीं जमता, चाहे वह हजार कसमें क्यों न खाए। वह प्रतीति तो उसके अपने कहे हुए वचन के या वादे के अनुसार कर दिखाने से ही होती है। असत्य अपने-आप में भी अप्रतीति का जनक है। ऐसे अप्रतीतिजनक वचन से हानि यह होती है कि एक व्यक्ति के वचन के प्रति हुई अप्रतीति, अन्य सत्यवादी सज्जनों के वचनों के प्रति भी जनता की अप्रतीति का कारण बनती है । इसलिए अप्रत्यय वचन को असत्य का सहोदर कहना अनुचित नहीं है। अप्रतीतिजनक वचन का प्रयोग करने वाले के वचन चाहे कितने ही मधुर, प्रिय और आश्वासनदायक हों, आकाशकुसुम की तरह निरर्थक हैं।
असमओ-जो वचन सदाचार से रहित हो, अथवा सिद्धान्त से विरुद्ध हो, उसे 'असमय' नामक असत्य कहते हैं । समय सदाचार और सिद्धान्त को भी कहते हैं । जिन वचनों में सदाचार का पुट न हो और जो सिद्धान्त के अनुकूल न हों, वे चाहे जितनी लच्छेदार, प्राञ्जल एवं वजनदार भाषा में ही क्यों न कहे गए हों, चाहे जितने विद्वत्तापूर्ण भी क्यों न हों, वे प्राणियों के अहित के पोषक होने से असत्य से युक्त हैं; इसलिए असमय वचन को असत्य वचन का साथी कहना समीचीन है। सदाचारयुक्त या सिद्धान्तानुकूल वचन यदि थोड़े से, या टूटे फूटे शब्दों में भी कहा जाता है तो उसका असर श्रोताओं पर जादू-सा होता है ; वह विरोधियों के हृदय को भी छू लेता है, दुराचारियों और पापियों के हृदय को भी झकझोर कर बदल देता है, किन्तु अनाचारपोषक, पापोत्तेजक या सिद्धान्तविरुद्ध अन्याययुक्त वचन लच्छेदार और व्यवस्थित रूप से कहा जाने पर भी श्रोताओं के हृदय पर उचित प्रभाव नहीं डाल पाता; विरोधियों को बदल नहीं सकता।
__ अथवा 'असंमओ' पाठान्तर का संस्कृत में असम्मत रूप होता है । जिसका अर्थ होता है, जो धर्माचार से या शिष्टपुरुषों द्वारा असम्मत वचन हो। शिष्टजन धर्ममर्यादाओं या धर्माचार से पुट वाले वचन कहते हैं। जो उपदेश या वचन धर्ममर्यादाओं या सम्यक् आचार से विपरीत हो, वह असत्य का पोषक है। अतः असत्य का पोषक होने से 'असम्मत' वचन को भी असत्य भाषण के समान बताया गया है।
असच्चसंधत्तणं—संधा अभिप्राय या प्रतिज्ञा को कहते हैं, कहीं-कहीं संधा का