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________________ १५२ श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र भयंकर पापों का आश्रय लेता है। इसलिए निःसंदेह कहा जा सकता है कि असत्य किल्विष—पापों की वृद्धि में निमित्त है। इसलिए इसे भी असत्य का पर्यायवाची बताया गया है । किल्विष अपराध को भी कहते हैं । असत्य अपने साथ हिंसा, क्रोध, राग-द्वेष, कलह, लोभ आदि अनेक अपराधों को ले आता है । वैसे असत्य भी स्वयं आप में एक अपराध है किन्तु वह दूसरे अपराधों का कारण होने से उसे किल्विष कहा गया है। किल्विष रोग को भी कहते हैं। आत्मा के साथ अनादिकाल से रागद्वेष, कर्म आदि रोग लगे हुए हैं, उनका कारण होने से भी असत्य को किल्विष कहा गया है। वलय-कंगन या कड़े को वलय कहते हैं। वह जैसे गोल होता है, वैसे ही गोलमोल वचन बोलना, असली बात को छिपाने के लिए कपटपूर्वक गोलमोल बात कहना, वलय नामक असत्य है। वलय असत्य का साथी इसलिए माना गया है कि इसमें जैसी बात होती है या जैसी बात देखी-सुनी या की है, वैसी ही उसी रूप में नहीं कही जाती; वह घुमा फिरा कर मायापूर्वक छिपा कर दूसरे रूप में बताई जाती है। सत्य सरल और स्पष्ट होता है, उसमें छिपाव, दुराव या बनावट, दिखावट नहीं होती, जबकि वलयवचन में ये सब होती हैं। इसलिए वलयवचन असत्य का ही साथी है। गहणं-जिसके अन्तिम परिणाम की थाह न लग सके, उसे गहन नामक असत्य कहते हैं । वचन का प्रयोग अपनी बात दूसरों को स्पष्ट और सरल रूप से ससझाने के लिए होता है । यदि वचन प्रयोग से अपनी बात का दूसरों को स्पष्ट बोध न हो तो वह सत्य नहीं कहलाता। गूढ़ वचन बोलने से या द्वयर्थक वचन बोलने से सुनने वाला उसे स्पष्ट न समझ सकने के कारण अपनी बुद्धि के अनुसार कई बार गलत अर्थ लगा लेता है, जिससे विसंवाद बढ़ जाता है। गलतफहमी के कारण कई बार तो भयंकर झगड़े भी होते देखे जाते हैं। गहन, गूढ, संदिग्ध या द्वयर्थक शब्दों का प्रयोग असत्य का कारण इसलिए भी है कि उससे दूसरों का अहित ही अधिक होता है ; मानसिक संक्लेश और अशान्ति भी बढ़ जाती है। उदाहरण के तौर पर धर्मराज युधिष्ठिर ने, महाभारत के समय द्रोणाचार्य के साहस को तोड़ने के लिए 'अश्वत्थामा हतो, नरो वा कुंजरो वा' ऐसे द्वयर्थक शब्द का प्रयोग किया था। इसका अर्थ द्रोणाचार्य अपने पुत्र अश्वत्थामा के मरने का समझ गए, और उनका साहस टूट गया, वे पुत्रशोक में विह्वल होकर लड़ना छोड़ बैठे, फलतः मारे गए । प्रायः कपटी लोग ही दूसरों को भ्रम में डालने या गलतफहमी के शिकार बनाने के लिए ऐसे गहन शब्दों का प्रयोग किया करते हैं। . मम्मणं अस्पष्ट रूप से किसी बात को कहना मन्मन नाम का असत्य है। किसी बात को स्पष्ट न कहने के कारण कई बार सुनने वाले उसका आशय नहीं
SR No.002476
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1973
Total Pages940
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size21 MB
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