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________________ १४४ श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र जाती हैं और वैर, द्वेष, छल, दुष्टता और हिंसात्मक संघर्ष की परम्परा बढ़ती जाती है । अतः इस दुर्नीति के बदले 'शठे सत्यं समाचरेत्' वाली सुनीति को अपनाना ही श्रेयस्कर है। अणज्जं-असत्य वस्तुतः अनार्य कर्म है ; आर्यकर्म नहीं । अनार्य लोग प्रायः अपना व्यवहार धोखा, छल, फरेब, मायाजाल, बे-ईमानी, ठगी, चकमा आदि के सहारे चलाते हैं, वे सत्य को पास ही नहीं फटकने देते। असत्य ही उन्हें जन्मघुट्टी में मिला होता है ; असत्य पर ही उनका भरोसा, श्रद्धा, बल, दारोमदार, आधार या विश्वास होता है। रातदिन असत्य का ही चिन्तन और अभ्यास उन्हें अनार्य बना देता है । आर्यत्व के संस्कार उन्हें मिल ही नहीं पाते । इसलिए अनार्यों द्वारा आचरित होने के कारण अथवा अनार्यों का कर्म होने के कारण असत्य को अनार्य ठीक ही कहा है । आर्य सत्यनिष्ठ और समस्त हेय कार्यों से दूर रहेगा। हिंसा, असत्य आदि भी हेय कार्य हैं, इसलिए अनार्य व्यक्ति ही सत्य को दबा कर असत्य का आचरण करने का दुःसाहस करता है। . मायामोसो-माया और मृषा (झूठ) दोनों जब घुलमिल जाते हैं, तब उनकी शक्ति दुगुनी हो जाती है । फिर 'एक तो करेला, फिर नीम का चढ़ा' इस कहावत के अनुसार असत्य बहुत ही जोरशोर से फलता-फूलता है। खुल्लमखुल्ला असत्य बोलने की अपेक्षा उस पर सत्य का मुलम्मा चढ़ा कर कपट और दम्भ से युक्त असत्य बोलना तो और भी ज्यादा खतरनाक है । मायाचार (दम्भ, दिखावे) के साथ असत्य भाषण भी व्यक्ति तब ही करता है, जब दूसरों को वास्तविक स्थिति से अनभिज्ञ रखने का इरादा होता है, अथवा अपनी निन्दनीय वासना पूरी करने की लालसा होती है। कई लोग अपने स्वार्थ या लोभ में अंधे होकर व्यापार के क्षेत्र में ऐसा किया करते हैं । ग्राहक जब उनसे पूछता है कि इसके दाम आप अधिक तो नहीं बता रहे हैं ? तब वह प्रायः जवाब देता है- "ज्यादा ले सो छोरा-छोरी खाय, ज्यादा ले सो गाय खाय ।" इस कथन से ग्राहक तो यह समझता है कि दूकानदार कसम खाकर कह रहा है कि 'जो ज्यादा ले वह गौ को खाए या लड़के-लड़की को खाए।' परन्तु बात कुछ और ही होती है। वह यह 'कि छोरा-छोरी खाय या गाय खाय', यानी गाय के खाते में या लड़के-लड़की के खाते में जमा किए जाते हैं। वे गाय या लड़के-लड़की के लिए खर्च किये जाते हैं । यह है कपटसहित मिथ्यावचन का रूप । कई विवाह सम्बन्ध कराने वाले दलाल भी ऐसा कपटमिश्रित झूठ का प्रयोग किया करते हैं । एक दलाल लड़की वाले के यहाँ एक ८० साल के बूढ़े का रिश्ता (सगाई सम्बन्ध) तय करने गया तो वहां उससे पूछा-लड़का कितने साल का है, जिसकी सगाई तुम मेरी कन्या के साथ करना चाहते हो ? तब उसने उत्तर दिया-'उगणीसा, बीसा, बीसा, इक्कीसा-एसी एसी
SR No.002476
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1973
Total Pages940
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size21 MB
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