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________________ १४२ श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र नामक असत्य (२५) ऐसा वचन, जो सिद्धान्त या शिष्टजनों से सम्मत न हो, वह असंमत या असमय नामक असत्य, (२६) झूठी प्रतिज्ञा करने या कसमें खाने के रूप में असत्य संधत्व नायक असत्य है, अथवा असत्य से मेलखाता या असत्य अभिप्राय वाला वचन भी असत्य संधत्व है (२७) धर्म या शिष्ट पुरुषों के प्रति विपक्षी वचन विपक्ष नामक असत्य है, (२८) माया पर आधारित वचन उपधि नाम का, या तुच्छबुद्धि से कहा गया वचन, अपधी नाम का असत्य है, (२६) कपटयुक्त सावध अशुद्ध शब्दों का कथन उपध्यशुद्ध नामक असत्य है। और (३०) वस्तु के सद्भाव का लोप करने वाला वचन अपलोप नामक असत्य है। इस प्रकार उस द्वितीय आश्रव द्वार मृषावाद (असत्य) के ये तीस नाम हैं । तथा उस पापरूप असत्य वचन योग के ऐसे ही और भी अनेक नाम होते हैं। व्याख्या प्रस्तुत सूत्रपाठ में असत्य के गुणनिष्पन्न एवं असत्य के स्वरूप को स्पष्ट करने वाले सार्थक तीस नाम बतलाए हैं । अन्त में, यह भी कह दिया है कि इसके केवल ३० नाम ही न समझ लेने चाहिएं, अपितु और भी अनेक नाम हो सकते हैं । जो वचन सावद्य (पापरूप) एवं असत्य अर्थ के प्रतिपादक हों, उन सबको असत्य समझ लेना चाहिए । इसी को शास्त्रकार स्पष्ट करते हुए कहते हैं—'एवमादीणि अणेगाई. तस्स सावज्जस्स अलियस्स वयजोगस्स नामधेज्जाणि होति ।' असत्य शब्द का अर्थ-'सद्भ्यो हितं सत्यं' इस व्युत्पत्ति के अनुसार जो प्राणिमात्र के लिए सर्वथा और सर्वदा हितकर हो , वह सत्य है ; और सत्य से जो विरोधी-विपरीत हो, वह असत्य है। इसी प्रकार सत्य का एक अर्थ यह भी है कि 'जैसा देखा हो, जैसा सुना हो, जैसा सोचा-समझा हो, जैसा अनुमान किया हो, मनवचन-काया से प्राणिहित को सामने रखकर वैसा ही प्रगट करना।' इससे विपरीत कथन असत्य है । जैसे विद्यमान पदार्थ को अविद्यमान कहना तथैव अविद्यमान को विद्यमान कहना असत्य है । इसी प्रकार सुनी, देखी, सोची-समझी कुछ और बात हो किन्तु कहना कुछ और हो; यह भी असत्य है । अपनी बात को, अपने भावों को छिपाना भी असत्य है; गोलमोल, अस्पष्ट, द्वयर्थक-गूढ या निरर्थक वचन कहना भी असत्य है । इसी प्रकार धूर्तता, धोखा, छल या वंचना की दृष्टि से, किसी को ठगने और अपने जाल में फंसाने की नीयत से मीठा बोलना भी असत्य है, दूसरों को पीड़ा या हानि पहुंचाने वाली वाणी या ऐसी तथ्यपूर्ण बात भी,जिससे प्राणि-हिंसा की संभावना हो, जिस वचन से अशान्ति, उपद्रव, झगड़े या वैमनस्य पैदा होता हो, वह वचन भी
SR No.002476
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1973
Total Pages940
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size21 MB
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