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________________ द्वितीय अध्ययन : मृषावाद-आश्रव १४१ (च) और (गहणं) गहन-गूढ़ वचन, जिसको थाह का पता न लग सके, ऐसा वचन, (च) और (मम्मणं) अस्पष्ट वचन, (नूमं) दूसरे के गुणों को ढांकने के लिए ढक्कन के समान आच्छादनरूप वचन, (निययो) अपनी मायाचारी को छिपाने का वचन, (अपच्चओ) अप्रतीतिजनक वचन, (असमओ) समय-सिद्धान्त से विपरीत वचन या शिष्ट पुरुषों द्वारा असम्मत वचन, (असच्चसंधत्तणं) असत्य से मेल खाता हुआ वचन अथवा असत्य संधा-अभिप्रायरूप, प्रतिज्ञारूप वचन, (विवक्खो) सत्य अथवा धर्म से विपक्ष वचन, (उवहीयं) उपधि-माया पर आधारित वचन अथवा (अवहीयं) तुच्छ बुद्धि से कहा गया वचन, (उवहि असुद्ध) कपट से युक्त सावद्य अशुद्ध वचन, (अवलोवो) वस्तु की वास्तविकता को छिपाने-लोप करने वाला वचन, (इति) इस प्रकार (अपि च) और भी (तस्स) उसके, (बिइयस्स) द्वितीय आश्रवद्वार के (एयाणि-इमाणि) ये (एवमादीणि) ऐसे ही और भी (तस्स) उसके (तीसं) तीस (नामधेज्जाणि) नाम हैं उस, (सावद्य-पापरूप, (अलियस्स) असत्य, (वयजोगस्स) वचनयोग के, (अणेगाइ) अनेक नाम (होंति) हैं। मूलार्थ-उस असत्य वचन के गुणनिष्पन्न (सार्थक) तीस नाम हैं । वे इस प्रकार हैं--(१) अलीक-मिथ्यावचन, (२) शठ-शठजनों द्वारा आचरित शाठ्यवचनरूप असत्य (३) अनार्य मनुष्यों का कम या अन्याययुक्त असत्य, (४) कपटसहित झूठ (५) असत् (अविद्यमान) या अप्रशस्त वस्तुओं का कथन, असत्य, ६) कूट-कपट, अवस्तु नामक असत्य, (७) निरर्थक और गलत अर्थ वाला असत्य, (७) विद्वष से परनिन्दारूप कथन वाला विद्वषगहणीय नामक असत्य (६) टेढ़ा या व्यंग्य पूर्ण बोलना-अनजुक नामक असत्य, (१०) मायारूप या पापरूप कल्कना नामक असत्य, (११) धोखेबाजीरूप वंचना नामक असत्य, (१२) न्यायवादियों द्वारा छोड़े हुए मिथ्यावचनरूप मिथ्यापश्चात्कृत नामक अंसत्य, (१३) अविश्वस्त वचन रूप साति नामक असत्य, (१४) अपने और दूसरे के गुणों को ढंकने वाले वचनों से युक्त उच्छन्न या अपच्छन्न नामक असत्य अथवा सूत्रविरुद्ध प्ररूपणारूप उत्सूत्र नामक असत्य, (१५) न्यायमार्ग की मर्यादा को लांघकर बोलने या न्याय पथ से भ्रष्ट कर देने वाला उत्कूल नामक असत्य, (१६) आत-पीड़ित मनुष्य के वचन रूप आर्त नाम का असत्य, (१७) सहसा किसी पर मिथ्या दोषारोपण करना, अभ्याख्यान नामक असत्य, (१८) पापजनकवचनरूप किल्विष नाम का असत्य, (१६) गोल-मोल बात करने को वलय नामक असत्य कहते हैं, (२०) गूढ़ बातें करना, जो किसी की समझ में न आवें ऐसा वचन, गहन नामक असत्य है, (२१) अस्पष्ट वचनरूप मम्मण नाम का असत्य (२२) दूसरे के गुणों को ढक देने के रूप में 'नूम' नामक असत्य, (२३) अपनी मायाचारी को छिपाने वाला निकृति नामक असत्य (२४) अप्रीतिकर वचन के रूप में अप्रत्यय
SR No.002476
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1973
Total Pages940
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size21 MB
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