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________________ १४० श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र (एवमाइयाणि एयाणि) नामधेज्जाणि होति तीसं सावज्जस्स अलियस्स वय (इ) जोगस्स अणेगाइं ।। सू०.६ ।। संस्कृतच्छाया तस्य च नामानि गौणानि (गुण्यानि) भवन्ति त्रिंशत् ; तद्यथा१ अलीकं, २ शठं, ३ अन्याय्यं (अनार्य), ४ मायामृषा, ५ असत्कं, ६ कूटकपटावस्तुकं ७ निरर्थकमपार्थकं च, ८ विद्वष-गर्हणीयं, · अनजुकं, १० कल्कना च, ११ वंचना च, १२ मिथ्यापश्चात्कृतं च, १३ सातिस्तु, १४ अपच्छन्नं (उच्छन्नं, उत्सूत्र), १५ उत्कूलं च, १६ आत, १७ अभ्याख्यानं, १८ किल्विषं, १६ वलयं, २१ गहनं च, २१ मन्मनं च, २२ नुमं (पिधान), २३ निकृतिः, २४ अप्रत्ययः, २५ असमयः (असम्मतः) २६ असत्यसंधत्वं, २७ विपक्षः, २८ उपधीक (आज्ञातिगं, अपधीकं) २६ उपध्यशुद्ध, ३० अवलोपः इति । अपि च तस्य (द्वितीयस्य) (इमानि) एतान्येवमादीनि (एवमादिकानि एतानि) नामधेयानि भवन्ति त्रिंशत् सावद्यस्यालीकस्य वचोयोगस्पानेकानि ॥ सू०६॥ पदार्थान्वय-(य) और, (तस्स) उस असत्य के (गोण्णाणि) गुणनिष्पन्नसार्थक, (तीस) तीस, (णामाणि) नाम (होंति) होते हैं । (तंजहा) वे इस प्रकार हैं-- (अलियं) अलीक, (सढं) शठ-शाठ्य-धूर्तता, (अणज्ज) अनार्य लोगों का कर्म अथवा अन्याययुक्त, (मायामोसो) माया-कपट-सहित मृषा-झूठ अर्थात् दम्भ, (असंतकं), असत् (अविद्यमान) या अप्रशस्तपदार्थों का कथन करना, (कृडकवडमवत्थु) दूसरों को ठगने के लिए हीनाधिक कहना, वचन-विपर्यास करना, अविद्यमान वस्तु का कथन करना, (निरत्थयमवत्थय) सत्य अर्थ से हीन, सत्य-अर्थशून्य बोलना, (विद्देसगरहणिज्ज) विद्वष या डाह के कारण दूसरे के प्रति निन्दामय वचन बोलना, (अणुज्जुकं) सरलतारहित वक्रतापूर्वक कथन, (कक्कणा य) माया या पाप का वचन कहना, (य) तथा (वंचणा) ठगना, धोखा देना, (मिच्छापच्छाकडं) मिथ्यारूप होने से न्यायवादियों द्वारा पीछे किया गया या छोड़ा गया, (अथवा मिथ्यारूप वचन और , बाद में पीठ पीछे से अवर्णवाद बोलना) (साती उ) अविश्वासरूप, (उच्छन्नं) अपने दोषों और दूसरे के गुणों को ढांकने वाला वचन, अथवा (उच्छुत्तं) उत्सूत्रप्ररूपण करना—शास्त्र से न्यूनाधिक या विपरीत प्ररूपण करना (च) और (उक्कूलं) न्याय मार्ग से भ्रष्ट करने वाला या न्यायरूप नदीप्रवाह के तट से अलग करने वाला वचन (च) और (अट्ट) आत-पीड़ित का वचन, (च) और (अब्भक्खाणं) मिथ्या दोषारोपण करना, (किब्बिसं) पापजनक वचन, (वलयं) चूड़ी के समान बात को गोलमोल या घुमाफिरा कर कहना
SR No.002476
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1973
Total Pages940
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size21 MB
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