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द्वितीय अध्ययन : मृषावाद-आश्रव
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कई लोगों में परस्पर द्वेषभाव पैदा हो जाता है, जो काफी वर्षों तक चलता रहता है । असत्य और अतिरंजित कल्पनाओं से मन उस वस्तु के प्रति मोहित और आसक्त हो जाता है । उसके न मिलने पर मन में संक्लेश होता है । पूर्वोक्त चारों ही विकार मानसिक संक्लेश पैदा करने वाले हैं । इसलिए असत्य वचन मन के क्लेश को बढ़ाता है ।
अलियं -असत्यवचन सदैव अशुभफल देता है ! इसलिए असत्य भाषण शुभफल की अपेक्षा से निष्फल है ।
नियडिसातिजोयबहुलं - असत्य स्वयं ही झूठ, फरेब, धोखेवाजी, धूर्तता, दम्भ और मायाजाल से भरा हुआ होता है । उससे कदापि किसी को सरल बनने की प्रेरणा नहीं मिलती । इसलिए असत्य धूर्तता, दम्भ, अविश्वसनीयता और जालसाजी से भरा होता है । दूसरों को ठगने, धोखा देने या दूसरों को अपने जाल में फंसाने के लिए मनुष्य असत्य का आश्रय लेता है । अपने द्वारा बोले हुए एक झूठ को सत्य सिद्ध करने के लिए मनुष्य व्यर्थ ही अनेक असत्यों व बनावट - दिखावट का सहारा
ता है । इसीलिए असत्य को धूर्तता, अविश्वास आदि का घर कहा है । मनुष्य झूठी कसमें खाकर, असत्य को सत्य का जामा पहना कर सत्य साबित करना चाहता है; मगर वास्तविकता कभी छिप नहीं सकती है । अतः किसी ने ठीक ही कहा है"सचाई छिप नहीं सकती बनावट के उसूलों से । कि खुशबू आ नहीं सकती, कभी कागज के फूलों से ।। "
नीयजणनिसेवियं - मनुष्य की कुलीनता या उच्च जाति एवं कुल आदि की पहिचान वचन से होती है । दुराचारी, असभ्य, कुसंस्कारी और पापात्मा मनुष्य नीचजन कहलाते हैं और ये नीचजन बात-बात में झूठ बोलते हैं, कटु और असभ्य शब्दों का प्रयोग करते हैं । हीन आचार-विचारों के जमे हुए कुसंस्कार ही नीचजनों को असत्य की ओर प्रेरित करते हैं । सदाचारी, सुसभ्य, धर्मात्मा और सुसंस्कारी मनुष्य उच्चजन कहलाते हैं । उच्चजनों की वाणी मधुर, संयत, सभ्य और सत्यपूर्ण होती है । उनकी वाणी में दम्भ, झूठ, फरेब, मायाजाल या धूर्तता का पुट नहीं होता । यही कारण है कि नीचजन ही असत्य का सेवन करते हैं, वे संकट में और आनन्द में हर समय असत्य को ही उपादेय समझते हैं । वे यही समझते हैं कि सत्य से जीवन दुःखी होता है, असत्य ही जीवन में सुख का मूल है। जबकि उच्चजन संकट में भी असत्य का सहारा नहीं लेते।
निस्संसं-असत्य भाषण नृशंस (घातक) मनुष्य का शस्त्र है । क्रूर मनुष्य अपने नीच हृदय की प्यास झूठफरेब का जाल रच कर बुझाता है । अपनी नृशंसता