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________________ १३४ श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र बोलबाला होने से कई लोग यह कहा करते हैं कि सत्य बोलने वाले को तो अनेक कष्ट सहने पड़ते हैं, इसलिए असत्य दुःखकर न होकर सत्य ही दु:खकर लगता है। परन्तु यह क्षणिक सुख की भ्रान्ति के कारण कहा गया है। सत्यवादी को प्रारम्भ में कदाचित् कुछ समय के लिए झूठे और धोखेबाज लोगों के बीच रहकर थोड़ा-सा कष्ट या आर्थिक हानि का सामना भले ही करना पड़े, लेकिन सदा के लिए उस पर दुःख के बादल छाये नहीं रहेंगे, वे जल्दी ही छंट जायेंगे, और सत्य का सूर्य चमक उठेगा । सत्य भाषण का सुखद फल अवश्य ही मिलेगा। इसलिए शास्त्र में असत्य को दुःखकर ठीक ही कहा है । सत्य ही अन्त में विजयी और सुख का कारण बनता है। . अयसकरं-असत्य अपयश बढाता है। असत्य बोलने वाले की समाज और राष्ट्र में कोई प्रतिष्ठा नहीं होती, लोग उसे अच्छी निगाहों से नहीं देखते । बड़े से बड़े इज्जतदार और यशस्वी पुरुष एक बार जब असत्य बोलकर सुखी और समृद्ध बनना चाहते हैं ; तभी उनकी सर्वत्र.अपकीर्ति होती है, वे अपने मुंह पर सदा के लिए कालिख पोत लेते हैं । धर्मराज युधिष्ठिर ने अपने पक्ष के लोगों के दबाव में आकर 'अश्वत्थामा हतो नरो वा कुंजरो वा' कहा, तभी से उनकी वास्तविक कीर्ति पर पानी फिर गया । इसलिए मृषावाद अयशःकारक है। वेरकारगं–कुलपरम्परा से चली आई हुई मैत्री को ध्वस्त कर परस्पर शत्रुता पैदा करने वाला यदि कोई उपाय संसार में है तो वह केवल 'असत्यवचन' है । मर्म- . स्पर्शी वचन, अपशब्द, गाली, निन्दा, चुगली, अप्रिय या बुरे वचन आदि सभी असत्य में शुमार हैं । जो दूसरे को चोट पहुंचने वाले, दुर्भावना से प्रयुक्त वचन हैं, वे सब आपस में वैर बंधाने वाले हैं। हमारा प्रत्यक्ष अनुभव है कि सर्वप्रथम मामूली कटु वचन से ही लड़ाई शुरू होती है, बाद में वह उग्ररूप धारण कर लेती है, और अन्त में, वह वैरपरम्परा पीढ़ी दर पीढ़ी चलती रहती है। अरति-रति-राग-दोस-मणसंकिलेसवियरणं-अरति (अप्रिय वस्तुओं या बातों से मन का उच्चाट), रति (प्रियवस्तुओं-इन्द्रियविषयों में रुचि), राग (धन स्त्री पुत्र आदि सांसारिक पदार्थों के प्रति मोह, ममत्व), द्वेष (अप्रिय वस्तुओं से घृणा, विरोध आदि) ये सब मन के संक्लिष्ट परिणाम हैं। इन्हें पैदा करने में मुख्य कारण असत्यवचन है। किसी सच्चे और भावुक आदमी पर मिथ्या दोषारोपण लगते ही उसके चित्त में उद्वेग या उच्चाट पैदा हो जाता है। फिर किसी अच्छी वस्तु पर भी उसका चित्त नहीं लगता । विषयों में आसक्ति बढ़ाने वाली या कामोत्तेजक कहानियां शृंगाररस को पुष्ट करती हैं ; ऐसे पापोत्तेजक घासलेटी साहित्य से मिथ्या कल्पनाओं द्वारा लोगों का चित्त विषयों के प्रति आकृष्ट हो जाता है,उसी में निरंतर वे निमग्न रहते हैं, इससे फिर राग, मोह और द्वेष बढ़ता है। असत्य के कारण पैदा हुए अविश्वास से
SR No.002476
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1973
Total Pages940
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size21 MB
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