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________________ १०२ श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र . विक्रिया द्वारा शस्त्रादि निर्माण क्यों और कैसे ?-नरक में जितने भी साधन मिलते हैं, वे अपने दुःख के बढ़ाने वाले होते हैं । वैक्रिय लब्धि नारकों को मिलती है, देवों को भी । परन्तु नारकों को वह मिलती है, उनके लिए अभिशाप के रूप में ही। क्योंकि वे उसके प्रभाव से शस्त्रादि बनाकर परस्पर लड़ते हैं और दुःख पाते हैं। विक्रिया दो प्रकार की होती है—पृथक् विक्रिया और अपृथक् विक्रिया । पृथक् विक्रिया देवों को प्राप्त होती है, जिसके प्रभाव से देव एक साथ अनेक शरीर बना सकते हैं । नारकों को अपृथक् विक्रिया प्राप्त होती है, जिसके प्रभाव से वे अपने शरीर से एक समय में एक ही विक्रिया कर सकते हैं और वह भी अशुभरूप विक्रिया ही । विक्रियारूप शरीर मूल शरीर से दुगुनी अवगाहना वाला बना सकते हैं । अर्थात् अपने शरीर को हिंसक प्राणी के रूप में या शस्त्र के रूप में बदल सकते हैं। यही बात 'असुहिं वेउविएहि' (अशुभ विक्रियाओं द्वारा) पदों.से सूचित होती है । यद्यपि नारकी जीव शुभ विक्रिया करना चाहते हैं, लेकिन होती है-अशुभ विक्रिया ही। यह उस नरकभूमि का प्रभाव है। अम्ब, अम्बरीष आदि असुरकुमार जाति के नरकपाल देव अपने शरीर से एक समय में अनेक आकार वाले शरीर या शस्त्रादि बना सकते हैं, लेकिन वे तीसरी नरकभूमि के आगे नहीं जा सकते। जबकि नीचे की नरकभूमियों में उत्तरोत्तर अधिकाधिक दुःख होता है। सवाल होता है कि वहाँ पर तो ये नरकपाल देव होते . नहीं, फिर कौन दुःख या यातनाएँ उन्हें देता है ? इसके उत्तर में शास्त्रकार ने नरक में जो शस्त्रास्त्रों के नाम गिनाए हैं या पशु पक्षियों के नामों का उल्लेख किया है, वे सब वहाँ होते नहीं, परन्तु ये सब नारकों की विक्रिया के रूप हैं । वैक्रिय लब्धि द्वारा नारकी इन्हें स्वयं बनाते हैं और परस्पर एक दूसरे को दु:खी करते हैं ; नारक ही दूसरे नारकों को वहाँ (चौथी नरकभूमि से ७ वीं तक) यातनाएं देते हैं। कोई नारक करौतरूप बन जाता है, कोई तलवार रूप ; कोई नारकी गिद्ध बन जाता है तो कोई कौआ । इस प्रकार एक दूसरे को पीड़ा देने में तत्पर रहते हैं । - वैक्रियलब्धि होने के कारण उन नारकियों के शरीर के टुकड़े-टुकड़े कर दिये जाने पर भी, कोल्हू में पीलकर उनके तमाम अंग चूर-चूर कर दिये जाने पर भी, रेत के समान भुरभुरे कर देने पर भी, वे पुनः ज्यों के त्यों पारे के समान जुड जाते हैं, वैसे के वैसे मिल जाते हैं। उनकी अकाल मृत्यु नहीं होती। इसलिए शरीर के कितने ही टुकड़े कर दिये जाँय, अंग तोड़मरोड़ दिये जांय या चमड़ी उधेड़ दी जाय, अथवा लहुलुहान कर दिया जाय, या काटा पीटा या छेदा जाए, या छुरी आदि उनके पेट में झोंक दी जाय, फिर भी जब तक का उनका आयुष्य बंधा है, तब तक वे मरते नहीं। इसीलिए तो वहाँ बार-बार यातनाएँ प्राप्त होती रहती हैं। एक बार शरीर के टुकड़े करते ही, या छुरा भोंकते ही जैसे यहाँ मनुष्य के प्राणपखेरू उड़ जाते हैं, वैसे नारक
SR No.002476
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1973
Total Pages940
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size21 MB
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