SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 145
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १०० श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र 1 में ले जाते हैं और उससे अपना अपराध स्वीकार करवाने के लिए निर्दयता से मारते, पीटते और सताते हैं । इसी प्रकार जेलखाने में कैदियों को भी भयंकर यातनाएँ दी जाती हैं । वैसे ही नरक में कुछ असुरकुमार जाति के देव हैं, जो इन नारकों को अपने पूर्वकृत अपराधों की याद दिला दिलाकर भयंकर से भयंकर यातना देते हैं । वे बड़ी बेरहमी से उन्हें विविध शस्त्रों से मारते, पीटते हैं, उनके अंगोपांगों को काट डालते हैं, शरीर के टुकड़े-टुकड़े कर देते हैं, उन्हें पैरों से कुचलते हैं, मार-मार उनकी चमड़ी उधेड़ देते हैं, शरीर सूजा डालते हैं, क्रूर पशु पक्षियों के आगे उन्हें डाल देते हैं, वे उन्हें मुर्दा समझ कर उन पर बुरी तरह टूट पड़ते हैं, उन्हें नोचते हैं, शरीर की बोटी-बोटी काट खाते हैं । इन सब दुःखों से घबराकर जब वे आर्तनाद करते हैं, दीनभाव से हाथ जोड़कर उन परमाधर्मी असुरों से छोड़ देने की प्रार्थना करते हैं, उनके आगे पुकार करते हैं, प्यास बुझाने के लिए पानी मांगते हैं तो वे पहले तो उन्हें डांटते, धमकाते हैं और उन पर क्रोध बरसाते हैं । फिर उनकी अंजलि में गर्मा-गर्म खौलता हुआ सीसा उंड़ेल देते हैं । वे बेचारे इसे पीते नहीं, अपितु हाय हाय करके थर हुए, डरते हुए, हिरणों की तरह इधर-उधर भागने लगते हैं । परन्तु ये परमाधामी फिर भी पकड़कर उनके मुंह को लोहे के डंडे से खोलकर खौलता हुआ सीसा उनके मुंह में डाल देते हैं । उन्हें अपने किये कर्मों की याद दिला दिलाकर भयंकर से भयंकर अमानुषिक यातना देते हैं । यह वर्णन इतना स्पष्ट है कि इसे ज्यादा समझाने की जरूरत नहीं । ये यमकायिक नरकपाल देव, जिन्हें वर्तमान भाषा में यमदूत भी कहा जा सकता है, बड़े ही अधार्मिक वृत्ति के क्रूरातिक्रूर परिणाम वाले रौद्रध्यानी होते हैं । इन्हें नारकों को यातना पाते देखने में और उन्हें यातना देने में बड़ा आनन्द आता है। ये यम नामक दक्षिण दिशा के रक्षक देव के सेवक होते हैं; अम्ब, अम्बरीय आदि नाम के असुरकुमार जाति के ये देव होते हैं । इन्हें परमाधामी या परमाधार्मिक भी कहते हैं । ये अपने इन अशुभ परिणामों के कारण मर कर अशुभगति में जाते हैं । ये तीसरी नरकभूमि तक जाते हैं और वहाँ के नारकियों को दुःख पहुंचाने के लिए कमर कसे रहते हैं । ये स्वयं वैक्रियलब्धि से नाना रूप बनाकर या भयावने पशु आदि के रूप धारण करके अथवा नाना प्रकार के शस्त्र-अस्त्र बनाकर नारकियों को निरन्तर बेरहमी से सताते रहते हैं । तथा नारकियों को भी पूर्व जन्मों के वैर की याद दिला-दिलाकर परस्पर लड़ाते - भिड़ाते रहते हैं । इसीलिए मूलपाठ में बताया गया है"सराहि पाव कम्माई दुक्कयाइ' अर्थात् – “अरे पापी अपने किये हुए बुरे पाप कर्मों का स्मरण कर ।” क्या असुरदेवों द्वारा इस प्रकार याद दिलाने से वे अपने पूर्वकृत दुष्कृत्यों का स्मरण कर लेते हैं ? इसके उत्तर में यही कहना है कि देवों और नारकों को जन्म लेते ही भव प्रत्यय अवधिज्ञान हो जाता है । अवधिज्ञान से इन्द्रियों की सहायता
SR No.002476
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1973
Total Pages940
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy