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________________ प्रथम अध्ययन : हिंसा - आश्रव १ वजनदार होने के रास्ते पर चलाकर नदी में कदंब के फूल के आकार की बनी हुई तीखी रेत पर, जलती हुई गुफाओं में नारकियों को फेंक कर या धकेल कर (उसिणोसिण- कंट इल्ल - दुग्गम रहजोयणतत्तलोहमग (पह) गमणवाहणाणि) गर्मागर्म कांटों वाले तथा अत्यन्त कारण कठिनाई से चलने वाले रथ में जोत कर, तपे हुए लोहे के एवं बैलों की तरह बहुत वजन लाद कर चलाये जाकर, (इमेहिं ) इन आगे कहे जाने वाले, (विवि) अनेक प्रकार के, (आयुहेहि ) हथियारों से नारकी परस्पर एकदूसरे को पीड़ा देते हैं । (ते) वे हथियार, (किं) कौन-कौन-से हैं ? ( मोग्गर-मुसु ढि- करकयसत्ति-हल-गय- मुसल-चक्क - कोंत-तोमर-सूल-लउड भिडिमाल -सद्ध ( ब ) ल-पट्टिस- चम्मेदुहण - मुट्ठिय-असि खेडग - खग्ग-चाव-नाराय-कणक- कप्पणि-वासी- परसु-टंक (कंटक) - तिक्ख निम्मला) मुद्गर, मुसु ंढि, करौत, त्रिशूल, हल, गदा, मूसल, चक्र, बर्छा, तोमर ( तबर), शूली ( बल्लम), लाठी, भिंडीमाल (गोफन) भाला, पट्टिस (एक प्रकार का अस्त्र), चमड़े से वेष्टित पत्थर, दुधण ( तोप या विशेष प्रकार का मुद्गर), हथोड़ा, कटारी, ढाल, तलवार, धनुष, बाण, नली वाला बाण, कैंची, वसूला, कुल्हाडा, बल्लम तथा तीखी नोक या धार वाले चमचमाते हुए शस्त्रों (य) तथा ( एवमादिएहि ) ये और इसी प्रकार के ( अर्णो हि ) दूसरे, ( असुभेहि ) पाप के निदानभूत अशुभ, (विव्विहिं ) इन्हीं में से सुधार कर या बिगाड़ कर कृत्रिम या अकृत्रिम तरीकों से बने हुए (पहरणसहि) सैकड़ों शस्त्रों से, ( अभिहता) सीधा प्रहार करते हुए, ( अणुबद्धतिव्ववेरा) निरन्तर तीव्र वैरभाव धारण किए हुए वे नारकीय जीव, (परोप्पर - dri) पूर्व वैर भाव स्मरण कर करके परस्पर पीड़ा को ( उदीरेंति) उकसाते हैं, (य) और ( तत्थ ) वहाँ ( मोग्गरपहारचुण्णिय - मुसंढिसंभग्ग - महितदेहा) मुद्गरों के प्रहार से उनके शरीर चूरचूर कर दिये जाते हैं, मुसुण्ढियों से शरीर जर्जर करके दही की तरह मय दिया जाता है, (जंतोवपीलणफुरंतकप्पिया) कोल्हू वगैरह यंत्रों से पैरने कारण फड़फड़ाते हुए उनके शरीर के टुकड़े-टुकड़े कर दिये जाते हैं, (केइत्थ) कई नारकियों को यहाँ, ( सचम्मका विगत्ता ) चमड़ीसहित विकृत कर दिया जाता है। अथवा चमड़ी खींचकर उधेड़ ली जाती है, (णिम्मूलुल्लूण कण्णो नासिका) कान, ओठ और नाक जड़मूल से काट दिये जाते हैं, (छिण्णहत्थपादा) हाथ-पैर काट लिये जाते हैं, ( असिकरकयतिक्खकोंतपरसुप्पहारफालियवासी संतच्छियंगमंगा ) उनके अंग-अंग तलवार, करौत, तीखे भालों, कुल्हाड़ी के प्रहार से फाड़ दिये जाते हैं और वसूले से छोल दिये जाते हैं, ( कलकलमाणखारपरिसित्तगाढ़डज्झतगत्त-कुं' तग्गभिण्ण-जज्जरियसव्वदेहा) उनके शरीर पर कलकल करता हुआ गर्मागर्म खार सींचा जाता है, जिससे शरीर जल जाता है, फिर भालों की नोंक से उसके टुकड़े-टुकड़े किये जाते हैं, इस प्रकार उनका सारे शरीर का कचूमर निकाल दिया जाता है, (विसूणियंगमंगा ) उनका
SR No.002476
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1973
Total Pages940
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size21 MB
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