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प्रथम अध्ययन : हिंसा - आश्रव
कहना है——संसार में बकरे आदि जितने जानवर हैं, वे सब मनुष्यों के खाने के लिए हैं । परन्तु मांसभोजियों की यह दलील थोथी और स्वार्थभरी है । यही दलील अगर सिंह आदि जानवर करें कि मनुष्य हमारे खाने के लिए पैदा हुए हैं, तो क्या मांसभोज इसे स्वीकार करेंगे ? फिर अपने पेट भरने के लिए मांस से भी बढ़कर ताकत देने वाली सात्त्विक चीजें छोड़कर मांस जैसे घृणित, अपवित्र, पापजनक, अल्पशक्तिदायक पदार्थ को अपनाने में कौन-सी बुद्धिमानी है ? जल से उत्पन्न ( आबी) अन्न, फल आदि पवित्र, सात्त्विक शक्तिप्रद, स्वास्थ्यवर्द्धक पदार्थों को छोड़ कर रजोवीर्य से उत्पन्न (पेशाबी) दूषित, अपवित्र ( नापाक ), तामसिक, स्वास्थ्यनाशक, काम क्रोधादि तमोगुणवर्द्धक मांस को अपनाना रत्न को छोड़कर कांच को अपनाने के समान है ।
मांस वैसे भी मानवप्रकृति के अनुकूल नहीं है । मानवशरीर की रचना यह बता रही है कि वह शाकाहारी है, मांसाहारी नहीं । मांसाहारी प्राणियों की शरीररचना शाकाहारियों से भिन्न है । बिल्ली, कुत्ते आदि मांसाहारी जानवरों की आँखें पीली, चमकीली, दांत नुकीले तथा पंजे तीखे होते हैं, वे जीभ से पानी पीते हैं, जबकि गाय बैल आदि शाकाहारी प्राणियों की आँखें काली व दांत चपटे होते हैं, उनके पैर के पंजे नुकीले नहीं होते, न वे जीभ द्वारा लपलपा कर पानी पीते हैं । अतः मनुष्य की शरीररचना शाकाहारियों के समान है। मांसाहारी में शक्ति और कार्यक्षमता उतनी नहीं होती, जितनी शाकाहारी में होती है, हाँ, क्रूरता और उत्तेजना मांसाहारी में ज्यादा होती है । इससे यह सिद्ध है कि मांसभोजन मनुष्य के लिए अहितकर, प्रकृतिविरुद्ध और स्वास्थ्यनाशक है । इस दृष्टि से जो मांसभोजन के लिए निर्दोष प्राणियों का वध करते हैं या करने में निमित्त बनते हैं, उनको भी उसके भयंकर कटुफल भोगने पड़ते हैं ।
आत्महित की दृष्टि से देखा जाय तो मांसाहारियों को मांस पशुपक्षियों के घात से प्राप्त होता है । जिन पशुपक्षियों को मारा जाता है, वे भी मनुष्य के जैसे ही प्राणी हैं, उन्हें भी सुख - दुःख का हमारे समान ही संवेदन होता है । वे भी हमारी ही तरह निरंतर अपने प्राणों की रक्षा करने में लगे रहते हैं । उन अनाथ, असहाय, बेकसूर, निर्बल और निर्दोष पशुपक्षियों को मनुष्य अपनी क्षणिक जिह्वा - तृप्ति के लिए मार डाले, यह कितनी नादानी है । कितनी बेहयाई और निर्दयता है । जो पशुजाति मनुष्य की प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से उपकारी है, गाय, भैंस, बकरी आदि दूध-घी देकर, ऊँट - घोड़ा आदि सवारी देकर या बोझा ढोकर, गधा आदि बोझ
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