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________________ श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र निव्वत्तेंति) निष्पन्न कर लेते हैं । (य) और (तत्तो) शरीर ग्रहण कर लेने के बाद (पज्जत्तिमुवगया) पर्याप्ति को प्राप्त हुए वे नारकीय जीव, (पंचह इंदियेहि) पाँचों इन्द्रियों द्वारा ( असुभाए) अशुभरूप ( उज्जल - बल - विउल-उक्कड - क्खरफरु सपयंडघोर बीहण गदारुणाए वेयणाए ) उज्ज्वल, बलवती, विपुल - समस्त शरीर व्यापी, उत्कट और कर्कशस्पर्श वाली, प्रचण्ड, घोर भयानक व अत्यन्त दारुण - पीड़ाजनक वेदना से (वेयणं) दुःखों का अनुभव करते हैं, (कि ते ?) वे दुःख कौन-कौन से हैं ? (कंदुमहाकु भिय-पयण- पउलण- तवग तलण- भट्ट-भज्जणाणि) लोहे की छोटी व बड़ी कडाही में पकाना, उबालना, तवे पर तलना और भाड़ में भू जना, (य) और ( लोहक डाहुक्कड्ढणाणि) लोहे के कडाह में डाल कर काढ़ा बनाना यानी खूब उबालना, (य) तथा ( कोट्टबलिकरण कोट्टणाणि) जैसे अज्ञ हिंसक देवियों के सामने प्राणी को बलि देते समय जबरन कूटते हैं, वैसे ही बलि चढ़ाना और कूटना । (सामलितिक्खग्ग लोहकंटकअभिसरण पसरणाणि) सेमल वृक्ष के तीखे मुंह वाले लोहे के काटों पर फैलाना और हटाना ( फालणविदारणाणि) चमड़ी फाड़ना और करौत वगैरह से चीरना (य) और ( अवकोडक बंधणाणि) भुजाओं और सिर को पीछे से बांधना, ( लट्ठिसयताणाणि) सैकड़ों लाठियों से पीटना (य) तथा ( गलगंबलुल्लंबणाणि) गले के बल लटका देना यानी गले में फांसी डाल कर लटका देना; (य) एवं (सूलग्गभेयणाणि ) शूलों की नोक से छेदना, ( आएसपवंचणाणि) झूठी बात कह कर ठगना, (खिसनविमाणाणि) डांटना, धमकाना और अपमान करना, (विद्युट्ठपणिज्जणाणि) 'इन जीवों ने ये महापाप किये हैं, उनका फल ये भोगें' ऐसी घोषणा करके वध्यभूमि को ले जाना (य) और ( बज्झसयमातिकाणि) सैंकड़ों षध्य स्थानों - मारने के स्थानों की जननी रूप – उत्पत्ति स्थान के समान, दुःखों का ( एवं ) उक्त प्रकार से (ते) वे पापकर्म करने वाले जीव अनुभव करते हैं । मूलार्थ वे हिंसा करने वाले पापिष्ठ जीव कौन-कौन हैं ? इस प्रश्न के उत्तर में शास्त्रकार कहते हैं कि वे इस प्रकार हैं सूअर का शिकार करने वाले, धीवर, पक्षियों का शिकार करने वाले - बहेलिए, हिरणों के शिकारी, क्रूर कर्म करने वाले कसाई, चीते आदि जीवों को पकड़ने के साधन रखने वाले, हिरनों का शिकार करने के साधन रखने वाले, मछलियों को पकड़ने के साधन रखने वाले मछुए, बाज आदि पक्षियों या मृग आदि को मारने के लिए लोहे का या दर्भ का फंदा या गुलैल आदि रखते हैं, सिंह आदि को पकड़ने के लिए झूठ-मूठ नकली बकरी रखते हैं, चाण्डालविशेष, एक पक्षी से अन्य पक्षियों को पकड़ने हेतु जाल हाथ में रखने वाले, भील आदि जंगल में घूमने वाले, व्याध, शहद के लिए मधुमक्खियों का नाश करने ७४
SR No.002476
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1973
Total Pages940
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size21 MB
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