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प्रथम अध्ययन : हिंसा - आश्रव
धापी में उसे विवेक का प्रकाश देने वाले शास्त्र के पाठ कितने उपकारी होते हैं । अज्ञानी जीवों द्वारा अपनी छोटी-सी जिंदगी के लिए या थोड़े-से जीने के लिए दूसरे सुखाभिलाषी प्राणियों पर किन-किन अधम प्रयोजन वश कहर बरसाया जाता है, उनके प्राणों को लूट-खसोटा जाता है; इसका कच्चा चिट्ठा शास्त्रकार ने मूलपाठ में खोलकर रख दिया है ।
पञ्चेन्द्रिय प्राणियों का वध करने का सर्वप्रथम प्रयोजन चमड़ा है । आजकल चमड़े का व्यापार व आयात-निर्यात हद से ज्यादा बढ़ गया है। इसके लिए बड़े-बड़े अद्यतन मशीनों वाले कत्लखाने खोले जाते हैं, जिनमें प्रतिदिन हजारों की संख्या में पशु निर्दयतापूर्वक काटे जाते हैं । उनका चमड़ा विदेशों में जाता है अथवा देश में चमड़े की चीजें बनाने के कारखानों में जाता है । वहाँ चमड़े के बूट, बटुए, सूटकेश,
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कोट, पट्टे, कमरबंद, घड़ी के पट्टे, आदि विविध लुभावनी वस्तुएँ बनकर • बाजारों में आती हैं । भोले भाले ग्राहक उन चमचमाती हुई चीजों को देखकर खुश होकर खरीदते हैं । वे यह नहीं सोचते कि चमड़े की इन वस्तुओं के बनाने में चमड़ा कहाँ से और कैसे आया है ? बल्कि कई बार तो गर्भवती भेड़ बकरियों को कत्ल करके उनके बच्चों को बेरहमी से मार कर मुलायम चमड़ा प्राप्त किया जाता है, जिसे क्र. मलेदर व काफलेदर कहते हैं । उस मुलायम चमड़े की बनी वस्तुएँ कई मूढ़ ग्राहक खुश होकर खरीदते हैं। इसी प्रकार मृगछाला या बाघंबर के लिए हिरण व बाघ को मारा जाता है । इसीलिए शास्त्रकार ने सबसे पहले चमड़े के लिए भयंकर हिंसा का जिक्र किया है !
चर्बी के लिए आजकल बड़े शहरों में पशुओं को कत्ल किया जाता है । वह चर्बी मशीनों के पट्टों पर लगाई जाती है। कपड़ों को फाइन बनाने के लिए चर्बी की पालिश जाती है । साबुन बनाने में भी चर्बी का इस्तेमाल होता है। यही नहीं, घी के बदले आजकल बड़े-बड़े शहरों में चर्बी को तपा कर उसे टीन में जमा कर बेचा जाता है । पता नहीं, लोग इसके पीछे होने वाले पंचेन्द्रियवध को क्यों नहीं सोचते ! कई दवाइयों में भी चर्बी पड़ने लगी है ।
यही हाल मांसाहार का है । पहले की अपेक्षा अब लोग मांस खाने के शौकीन
ज्यादा होते जा रहे हैं। अंडों को तो निर्जीव मानने और आलू के समान समझकर धड़ल्ले से खाने लग गये है । अंडा किसी पेड़ का फल नहीं है और न जमीन में ही पैदा होता है । है वह मुर्गी के पेट का ही बच्चा और पंचेन्द्रिय जीव । अंडा निर्जीव होता तो मुर्गी पेट में आता ही कैसे ? है तो वह सजीव हो । हाँ, यह हो सकता है कि उसको हिलाने वगैरह से जीव च्युत हो गया हो । परन्तु है वह मुर्गी के रज, रस, रक्त आदि से उत्पन्न, घिनौना पदार्थ ही ! मांसभोजियों की संख्या बढ़ने से कत्लखाने बढ़ते
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