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________________ ६६ श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र जा रहे हैं । इससे अन्न की बचत होती हो, यह बात भी नहीं दिखाई देती । मांसभोजी • मांस तो जिह्वा की तृप्ति के लिए खाते हैं, उधर अन्न भी उतना ही खाते हैं । मत्स्याहार भी बढ़ता जा रहा है । इस पंचेन्द्रिय वध का अभिशाप यह हुआ है कि भारत में दुधारू पशुओं की संख्या दिन-ब-दिन कम होती जा रही है, प्रायः निःसत्त्व, निर्बल और जोतमोगुणी संतान पैदा होती जाती है । रक्त का भी उपयोग काफी मात्रा में बढ़ गया है । कई लोग अपने शरीर को मजबूत और ताकतवर बनाने के लिए बंदर का खून चढ़वाते हैं । कई जगह रक्त का पेय पदार्थ की तरह उपयोग होता है । वस्त्रादि रंगने में भी उसका उपयोग कहीं कहीं. होता है । मोरिस से आने वाली शक्कर या चीनी खून से साफ की जाती थी, ऐसा सुनने में आया है । कई दवाइयों या इजेक्शनों में रक्त का मिश्रण किया जाता है । इसी प्रकार हड्डी, जिगर, फेफड़े, मस्तिष्क, हृदय, आंतें, पित्त, मज्जा, नख, आँखें, कान, नसें, दांत, दाढ़, नाक, नाड़ियाँ, सींग, पंख, विष, हाथीदांत और केशों के लिए भी निर्दोष पंचेन्द्रिय जीवों का वध किया जाता है । जैसे हाथ के चूड़े वगैरह बनाने के हेतु हाथीदांत के लिए हाथी को घेरा जाता है, उसे फंसाया जाता है, और मारा Safe सूअर, चमरी गाय आदि का, सींगों की वस्तु बटन आदि के लिए हिरनों का विष के लिए सांपों का बध कर देते हैं । पंखों के लिए अनेक रंगविरंगे पक्षियों का, पिच्छों के लिए मोर का, पित्त के लिए गाय का, इत्यादि विविध प्रयोजनों. के लिए हिंसक लोग प्राणिवध करते हैं । रसलोलुप लोग चतुरिन्द्रिय प्राणी - भौरों और मधुमक्खियों का नाश कर देते हैं, वे शहद पाने के लिए ही ऐसा करते हैं । एक छत्ते में से शहद लेने में अनेक मधुमक्खियों का घात हो जाता है । शरीर को संस्कारित करने के लिए कई लोग त्रीन्द्रिय जीवों का घात करते हैं । रेशमी वस्त्र बनाने के लिए शहतूत के कीड़े आदि का वध किया जाता है । वस्त्रादि को रंगने, पालिश करने आदि के लिए भी त्रीन्द्रिय जीवों का वध होता है । इसी प्रकार मंदबुद्धि लोग बाग, बावड़ी घर, मंडप, भवन, बाजार, अटारी, पुल, स्तूप, मठ, विहार, आश्रम, द्वार आदि बनाने के लिए पृथ्वीकायिक जीवों की हिंसा करते है, स्नानादि कार्यों के लिए अप्काय के जीवों का, पकाने - पकवाने, जलाने, उजाला करने आदि कार्यों के लिए अग्निकायिक जीवों का घात करते हैं, सूप, पंखे, वस्त्र, हथेली, वस्त्र आदि से वायुकायिक जीवों का वध करते हैं, तथा विविध भोजन, मंडप, तोरण, भवन, बैलगाड़ी, छोटी सवारी, रथ आदि बनाने के लिए वनस्पतिकायिक जीवों का संहार होता है । यद्यपि गृहस्थ, चाहे वह व्रतधारी श्रावक भी हो, एकेन्द्रिय जीवों की हिंसा से सर्वथा विरत नहीं हो सकता । उसको अपनी गृहस्थी चलाने के लिए मकान वगैरह
SR No.002476
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1973
Total Pages940
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size21 MB
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