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________________ श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र परन्तु चेतना सब जीवों में अवश्य रहेगी। चाहे किसी जीव का दर्शन और ज्ञान कितना ही आवृत क्यों न हो जाय,फिर भी उसके आठ रुचक प्रदेश तो खुले रहते हैं। कहने का मतलब है कि ऐसा कभी नहीं होता कि वह जिंदा रहे,लेकिन उसमें चैतन्य कतई न रहे । जब चैतन्य मृत्यु होने से निकल जाता है तो वह निश्चेतन या निर्जीव हो जाता है । अतः एकेन्द्रिय जीव से लेकर पञ्चेन्द्रिय जीव तक में चैतन्य जब तक रहता है, तब तक उसमें जीवत्व रहता है, उसमें आत्मा रहती है। जितने भी जीव हैं, उनमें आत्मा जरूर होती है। पृथ्वीकाय के जीवों में चेतना होने का सबूत यह है कि खान आदि में से शिलाएँ या चट्टानें तोड़कर निकाल लेने और चूरा डालने के कई महीनों के बाद वहाँ पहले की तरह पुनः शिलाएं बन जाती हैं। यह वृद्धि क्या बिना चेतना के हो सकती है। जिस मिट्टी को सूर्य की किरणों का या प्राणियों का आवागमन के कारण स्पर्श होता रहता है, वह तो अचेतन हो जाती है, लेकिन जो नीचे से खोदकर निकाली जाती है, वह सजीव होती है, उसका लेप लगाने पर वह जहर को चूस लेती है, घाव को ठीक कर देती है, उसे खाद और पानी मिलने पर उससे अनाज, पेड़-पौधे आदि उग जाते हैं । क्या यह मिट्टी की जीवनी शक्ति का चिह्न नहीं है। इसी प्रकार जलकायिक जीवों में भी चेतना होने का प्रमाण यह है कि पानी की पट्टी बांध देने पर वह रोगी को स्वस्थ कर देता है, घाव पर पानी की पट्टी लगातार बांधने पर वह मवाद आदि को साफकर उसे चूस लेता है । यह उसकी जीवनी शक्ति का चमत्कार नहीं तो क्या है ? अग्निकाय और वायुकाय में भी चेतनाशक्ति मौजूद है, तभी तो अगर, कोई न बुझाए या रोक न लगाए तो वे अपने आप आगे से आगे बढ़ते जाते हैं। वनस्पतिकाय में चेतना और सुखदुःखादि का संवेदन अनुभव से, शास्त्रों से और वर्तमानकाल के वनस्पति विज्ञान वेत्ताओं द्वारा प्रत्यक्ष से भी सिद्ध है । वृक्ष श्वास लेते हैं और छोड़ते हैं । दिन में उनकी छाया में बैठने पर वे ऑक्सिजन (स्वास्थ्यवर्धक प्राणवायु) छोड़ते हैं और मनुष्य के मुंह से निकलने वाले कार्बन को ग्रहण करते हैं। मनुष्य के लिए ऑक्सिजन लाभदायक होता है, वृक्षों के लिए कार्बन । इसी प्रकार अफ्रीका आदि देशों में कई पेड़ ऐसे पाये गये हैं जो जहरीला धुआ या गैस छोड़ते हैं, जिससे पास आने वाला दम घुटकर मर जाता है। कई ऐसे वृक्ष भी वहाँ पाये गये हैं, जो पास में आने वाले मनुष्य या पशु आदि को नीचे झुक कर पकड़ लेते हैं और उसे चूसकर छोड़ देते हैं। कई पेड़ ऐसे भी पाये गये हैं, जो अपने पत्तों पर किसी कीड़े या पक्षी आदि को बैठते ही उसे दोने की तरह बंद कर लेते हैं, वह प्राणी उसी में फंस कर मर जाता है। कई पेड़ों के पत्ते करवत की तरह तीखे होते हैं, वे प्राणी के पास में आते ही उसके अंग को चीर डालते हैं । लाजवंती (छुइ मुई) नाम की वनस्पति छूते ही सिकड जाती है। फिर वनस्पतियों को बढ़ते और फैलते हम देखते हैं । यह बातें क्या जड़ में पाई जा सकती हैं ? क्या ये बातें वनस्पति में चेतनता–सजीवता के प्रमाण नहीं हैं ?
SR No.002476
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1973
Total Pages940
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size21 MB
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