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________________ ६० श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और वनस्पति कायिक जीव । ये पाँचो स्थावर' जीव कहलाते हैं । पृथ्वीकायिक जीव वे हैं, जिनका शरीर ही पृथ्वीमय है, पृथ्वी का ही बना हुआ है । जहाँ जैसा पृथ्वी का रंग (रूप), रस (स्वाद), गंध ( खुशबू या बदबू ), और स्पर्श होगा, वैसा और तद्रूप ही उन जीवों का शरीर होगा । जैसे – मिट्टी, मुरड़, हिंगुल, हड़ताल, हिरमच, नमक, पत्थर, रत्न, मणिमाणिक्य, अभ्रक शिला आदि । aarfe जीव वे हैं, जिनका शरीर ही जलमय है, जल का ही बना हुआ है । जहाँ जैसा जल का रंग (रूप) गंध, रस (स्वाद) और स्पर्श (ठंडा या गर्म आदि) होगा वैसा और तद्रूप ही उन जीवों का शरीर होगा । जैसे कुए तालाब, बावड़ी, समुद्र, नदी, झरना, बरसात आदि का पानी । तेजस्कायिक जीव वे हैं, जिनका शरीर ही अग्निमय है, अग्नि का ही बना हुआ है । अग्नि का रूप गंध और स्पर्श जहाँ जैसा होगा, वहाँ वैसा और तद्रूप ही उन जीवों का शरीर होगा । जैसे—आग, ज्वाला, अंगारे, चिनगारी आदि । 1 वायुकायिक जीव वे हैं, जिनका शरीर ही वायुरूप है, हवा का ही बना हुआ है । वायु का वर्ण, गंध, रस और स्पर्श जहाँ जैसा होगा, वहाँ उन जीवों का शरीर भी वैसा तद्रूप होगा । जैसे - उक्कलियावात, मंडलियावात, घनवात, तनुवात, शुद्धवात आदि । , वनस्पतिकायिक जीव वे हैं, जिनका शरीर ही वनस्पतिमय है, वनस्पति का बना हुआ है । जहाँ जैसा भी रंग (रूप), रस, (स्वाद), गंध और स्पर्श होगा, वहाँ उन जीवों का शरीर भी वैसा और उसी रूप में परिणत हो जायगा । जैसे विविध शाक, भाजी, फल, आम, नीम, जामुन आदि के पेड़, पौधे, फूल, ईख, कपास, विविध प्रकार के धान्य, आदि ।' ये पाचों एकेन्द्रिय और स्थावर जीव दो प्रकार के हैं -- सूक्ष्म और बादर । सूक्ष्म एकेन्द्रिय वे हैं, जो काटे नहीं कटते, मारे नहीं मरते । वे अपनी आयु पूर्ण करके ही मरते हैं । इन्हें किसी आधार की आवश्यकता नहीं रहती । ये सारे लोक में ठसाठस भरे हैं । इनका रास्ता कोई दीवार या प्रतिबन्ध रोक नहीं सकते । बादर एकेन्द्रिय वे हैं, जो दूसरों को रोकते हैं, स्वयं भी दूसरे से रोके जाते हैं, जो शस्त्र से कट सकते हैं । वनस्पतिकायिक जीवों के इन भेदों के अलावा दो भेद और हैं- प्रत्येक वनस्पतिकाय और साधारण वनस्पतिकाय । जो एक शरीर का एक ही स्वामी हो, वह प्रत्येक वनस्पतिकाय कहलाता है जैसे - फल, बीज, अन्न आदि । और जहाँ एक ही शरीर १ इनका विस्तृत वर्णन प्रज्ञापना सूत्र के प्रथम पद में देखें । – संपादक
SR No.002476
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1973
Total Pages940
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size21 MB
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