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________________ प्रथम अध्ययन : हिंसा - आश्रव ५६ यद्यपि प्रस्तुत सूत्रपाठ में तिर्यञ्चगति के एकेन्द्रिय से लेकर पंचेन्द्रिय तक के जीवों के नाम गिनाये हैं, तथापि स्पष्ट समझने के लिए हम संक्षेप में इनकी व्याख्या कर देते हैं तिर्यञ्चपंचेन्द्रिय के ५ भेद हैं- जलचर, स्थलचर, खेचर, उरः परिसर्प और भुजपरिसर्प । जलचर वे हैं, जो जल में ही चलते हैं, स्थल पर जिनका जीवन टिक नहीं सकता, जल के सहारे से ही जो अपना जीवन टिकाते हैं । वे न आकाश में उड़ सकते हैं, न स्थल पर चल सकते हैं । जैसे मछली, मगरमच्छ, घडियाल आदि जलचारी जन्तु स्थलचर वे हैं, जो इस जमीन पर ही चल सकते हैं, न वे उड़ सकते हैं और न वे जल में चल सकते हैं; जैसे हाथी, घोड़ा, गधा, बैल, गाय, हिरण आदि चौपाये जानवर । उरः परिसर्प, वे हैं, जो पेट के बल रैंग कर या सरककर चलते हैं, यद्यपि वे चलते जमीन पर ही हैं, किन्तु चौपाये जानवरों की तरह पैरों के बल नहीं चल सकते । जैसे अजगर, सर्प, महासर्प आदि । ये न आकाश में उड़ सकते हैं, न जल में चल सकते हैं। हाँ, कुछ सांप तैर जरूर लेते हैं । भुजपरिसर्प वे हैं, जो भुजाओं के बल गति करते हैं । वे न तो उड़ सकते हैं, न जल में चल सकते हैं । जैसे― चूहा, नेबला, गिरगिट, गिलहरी आदि । यद्यपि ये भी भूचर हैं, तथापि चौपाये जानवरों की तरह पैरों से नहीं चलते । खेचर वे हैं, जो आकाश में या जमीन से ऊपर उड़ने वाले प्राणी हैं । यद्यपि ये जमीन पर उतरते हैं, टिकते हैं, परन्तु खासतौर से ये अपने पंखों के बल पर आकाश में उड़ते हैं । इसलिए इन्हें पक्षी कहा है । जैसे कबूतर, चिड़िया, हंस, बाज, कौआ, मोर, चकोर, तीतर आदि । ये पाँचों ही प्रकार के तिर्यञ्च पंचेन्द्रिय कहलाते हैं । चतुरिन्द्रिय वे जीव हैं, जिनके स्पर्शनेन्द्रिय ( शरीर - त्वचा), रसनेन्द्रिय, घ्राणेन्द्रिय और चक्षुरिन्द्रिय ये चार इन्द्रियाँ हों । जैसे- भौंरा, टिड्डी, मधुमक्खी आदि । त्रीन्द्रिय जीव वे हैं, जिनके स्पर्शन, रसन और घ्राण ये तीन इन्द्रियाँ हों । जैसे- चींटी, मकौड़े, कीड़े आदि । द्वन्द्रिय जीव वे हैं, जिनके स्पर्शनेन्द्रिय और रसनेन्द्रिय ये दो ही इन्द्रियाँ हों । जैसे- शंख, सीप, अलसिया, लट आदि । पंचेन्द्रिय से लेकर द्वीन्द्रिय तक त्रस जीव कहलाते हैं । एकेन्द्रिय जीव वे हैं, जिनके सिर्फ एक ही स्पर्शनेन्द्रिय हो । जैसे—
SR No.002476
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1973
Total Pages940
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size21 MB
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