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________________ श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र तथा ऊखल मूसल आदि अनेक उपकरणों के लिए मन्द बुद्धि लोग पृथ्वीकायिक जीवों की हिंसा करते हैं। स्नान, पान, भोजन, वस्त्रप्रक्षालन तथा शौच आदि कार्यों के लिए जलकायिक जीवों की हिंसा करते हैं। एवं पकाने, पकवाने, जलाने और उजाला करने आदि कामों के लिए अग्निकायिक जीवों की हिंसा करते हैं । ___ सूप (छाज), पंखों, ताड़पत्र के पंखों, मोर पंख के पंखों,कागज आदि के पन्ने, मुह, हथेली सर्गवृक्ष के पत्त और वस्त्र आदि साधनों से वायुकायिक जीवों की हिंसा करते हैं। __ तथा मकान, तलवार वगैरह का म्यान,मोदक आदि भक्ष्यवस्तु, भोजन, शय्या,आसन,लकड़ी के पट्टे, ऊखल, मूसल,वीणा आदि तार वाले बाजे. ढोलनगाड़े आदि चमड़े से मढ़े हुए बाजे, अन्य बाजे, जहाज गाड़ी आदि सवारी, लता आदि का मंडप,अनेक प्रकार के भवन (इमारतें), तोरण,कबूतरों के बैठने का स्थान, देवालय, झरोखे, विशेष किस्म की सीढ़ियां, दरवाजे पर अगल बगल में निकले हुए लकड़ी के कंगरे, चौबारा, वेदी, निसैनी, नाव, बड़ी टोकरी, कील (खूटियाँ), रावटी (खेमा), सभा, प्याऊ, मठ, सुगन्धित चूर्ण (पाउडर), फूलों की माला और चंदन आदि का लेप, कपड़े, जूड़ा-जूआ, हल, खेत जोतने के बाद भूमि को सम करने वाला औजार (सूहागा). हल की तरह का खेती का औजार, विशेष प्रकार का रथ, पालकी, रथ, बैलगाड़ी, यान (घोड़ा आदि के जुतने से चलने वाली सवारी), एक तरह की पालकी, अटारी, नगर और प्राकार के बीच का ८ हाथ चौड़ा रास्ता, द्वार, नगर का सदर दरवाजा, आगल, अरघट आदि यंत्र, शली, लाठी, बंदूक, तोप, अन्य हथियार, ढाल, कवच आदि आवरण, मंच आदि उपकरणों-साधनों के लिए, इन और ऐसे ही दूसरे बहुत से सैकड़ों कारणों-प्रयोजनों से वे उन तरुगणों (उपलक्षण से वनस्पतिकायिक जीवों) की हिंसा करते हैं। ... इस प्रकार और भी ऊपर कहे हए या नहीं कहे हुए शक्तिहीन प्राणियों का पापकर्म में दृढ़, मूढ़ व कठोरमति जीव घात करते हैं। उनमें से कई तो क्रोध के वश, कई मान के वश, कई माया के वश, कई लोभ के वश, कई हंसी, रति, अरति और शोक के वश, कई स्त्री आदि वेद का उदय होने पर उसकी पूर्ति के लिए, अथवा वेदोक्त अनुष्ठान के लिए, जीने की कामना से प्ररित होकर कामभोग की इच्छा पूरी करने के लिए, अर्थ के लिए और कुल जाति आदि के तथाकथित धर्म के पालन के लिए या धर्म के नाम पर
SR No.002476
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1973
Total Pages940
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size21 MB
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