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________________ प्रथम अध्ययन : हिंसा-आश्रव धोने या साफ करने के लिए दीन-हीन अगणिततीन इन्द्रियों और दो इन्द्रिय वाले जीवों की हिंसा करते हैं । इसी प्रकार के दूसरे बहुत-से सैंकड़ों कारणों से अज्ञानी जीव इस लोक में बेचारे त्रसजीवों का वध कर डालते हैं । इसी प्रकार बहुत-से अज्ञानी जीव बेचारे इन एकेन्द्रिय जीवों का और उन एकेन्द्रिय जीवों के ही आश्रित बहुत से सूक्ष्म शरीर वाले त्रसजीवों का नाश कर डालते हैं। वे एकेन्द्रिय जीव सुरक्षारहित, अशरण, अनाथ, बन्धुजनरहित, कर्मों की बेड़ियों से जकड़े हुए होते हैं, मिथ्यात्वी होने से उनके परिणाम शुभ नहीं होते, मंदबुद्धि प्राणियों को उनके अस्तित्व का ज्ञान दुष्कर होता है। उनमें पृथ्वीकायिक जीवों का शरीर पृथ्वीमय होता है, उनके आश्रित कई अलसिया आदि त्रसजीव होते हैं ; अप्काय के जीवों का शरीर जलमय होता है, उसके आश्रित फुआरे वगैरह बहुत-से त्रस जन्तु रहते हैं, तथा अग्नि, वायु और वनस्पति आदि का शरीर भी क्रमशः अग्निमय, वायुमय और वनस्पतिमय होता है, उनके आश्रित रहने वाले या उन्हीं के ही विकार से उत्पन्न कई जन्तु होते हैं । ये सब एकेन्द्रिय जीव पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और वनस्पति के ही आधार पर या आहार पर रहते हैं, और पृथ्वी आदि के रूप में ही परिणत वर्ण-गन्ध-रस-स्पर्शमय शरीर धारण करके रहते हैं। इनमें कई सूक्ष्म हैं, जो आँखों से दिखाई नहीं देते ; कई आँखों से दिखाई देते हैं। ऐसे त्रसकायिक जीव असंख्य होते हैं । और स्थावर कायिक जीव सूक्ष्म, बादर, प्रत्येक और साधारण शरीर के भेद से अनन्त हैं । इनमें से कई जीव अपने विनाश के दुःख को स्पष्ट महसूस करते हैं और कई स्पष्ट महसूस नहीं करते । मोहान्ध जीव आगे बताये जाने वाले इन विविध कारणों-प्रयोजनों से उनका संहार करते हैं । वे प्रयोजन इस प्रकार हैं कृषिकर्म, पुष्करिणी, बावड़ी, खेत, क्यारी, कुआ, तालाब, कमलों वाला सरोवर, चिता, वेदिका, खाई, बाग, बौद्ध-विहार या मठ, स्तूप, कोट, द्वार, नगर का सदर दरवाजा, अटारी, नगर और कोट के बीच का आठ हाथ का मार्ग, पुल, उबड़खाबड़ जगह से उतरने का रास्ता, राजमहल, बंगला या प्रासाद के अन्तर्गत मकान, भवन (पक्काघर), तुणकुटीर या झोंपड़ी, मामूली घर, गुफा, बाजार, यक्षादि की प्रतिमा का स्थान, शिखर वाले देवालय (मन्दिर), चित्रों से सुसज्जित सभामण्डप, प्याऊ, देवायतन, तापसों का आश्रम या मठ, भूमिगृह, और मण्डप (तम्बू) के लिए तथा अनेक प्रकार के सोने, चांदी, तांबा, पीतल आदि धातुओं के अनेक किस्म के बर्तनों एवं नमक मिर्च आदि बेचने के साधनों (किराने)
SR No.002476
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1973
Total Pages940
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size21 MB
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