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________________ मंगलाचरण णमो अरिहंताणं, णमो सिद्धाणं, णमो आयरियाणं, णमो उवज्झायाणं, णमो लोए सव्व साहूणं । एसो पंच णमोक्कारो, सव्वपावप्पणासणो । मंगलाणं च सव्वेसि, पढमं हवइ मंगल ॥ अर्थ - अरिहन्तों को नमस्कार हो, सिद्धों को नमस्कार हो, आचायां को नमस्कार हो, उपाध्यायों को नमस्कार हो, लोक में सर्व साधुओं को नमस्कार हो । यह पंच - नमस्कार समस्त पापों का नाश करने वाला है और सब मंगलों में श्र ेष्ठ (प्रधान) मंगल है | विशेष- इन पाँचों परमेष्ठियों में अरिहन्त या अर्हन्त और सिद्ध, ये दोनों देवकोटि में आते हैं; आचार्य, उपाध्याय और साधु, ये तीनों गुरुकोटि आते हैं। इनके अतिरिक्त नवकार मंत्र में (नव पद नाम से) नमो नाणस्स, नमो दंसणस, नमो चरित्तस्स, नमो तवस्स इन चार पदों का समावेश और किया जाता है । ये ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप चार पद धर्मकोटि में आते हैं। आराध्य - त्रिपुटी यद्यपि नमस्कार मंत्र की चूलिकारूप में जो गाथा है, उसमें शेष चारों पद अंकित नहीं हैं, तथापि परम्परागत धारणा के अनुसार नवकारमंत्र के नौ पदों में पूर्वोक्त पाँच पदों के अतिरिक्त शेष चार पदे ज्ञान, दर्शन,, चारित्र और तप, ये ही माने जाते हैं । जैन जगत् में इन नौ पदों की आराधना-उपासना करने की परिपाटी प्रचलित है । चैत्र मास के शुक्लपक्ष और आश्विन मास के शुक्लपक्ष की सप्तमी
SR No.002475
Book TitleJain Tattva Kalika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1982
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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