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________________ प्रमाण -नय-स्वरूप | २६३ तृतीय मंग वस्तु क्या है और क्या नहीं ? इस संयुक्त जिज्ञासा के समाधान के लिए तृतीय भंग निष्पन्न हुआ, जिसमें वस्तु में अस्ति और नास्ति दोनों सापेक्ष धर्मों का कथन किया गया । जो कार्य अस्ति नास्ति उभयात्मक (उक्त वस्तु के कुछ अस्तिधर्मों और कुछ नास्तिधर्मों का) तीसरे भंग से होता है, वह न तो केवल 'अस्ति' ही कर सकता है, और न केवल 'नास्ति' ही कर सकता है । अतः यह 'स्याद् अस्ति नास्ति' नामक तीसरा भंग कहलाता है । चतुर्थ भंग - चाहे जिस तरीके से वस्तु का वर्णन क्यों न करें, वह वर्णन आंशिक ही होगा, सम्पूर्ण नहीं; क्योंकि अस्तिधर्म और नास्तिधर्म दोनों अनन्त होने से, उनमें से जिन धर्मों का वर्णन अशक्य है, वे तो वाणी द्वारा कहे ही नहीं जा सकेंगे, अतः अवक्तव्य ही रहेंगे। इस दृष्टि से वस्तु किसी अपेक्षा से 'अवक्तव्य' है । यह स्यात् अवक्तव्य नाम का चतुर्थ भंग निष्पन्न हुआ । · पंचम भंग - कथंचित् अवक्तव्य होने पर भी वस्तु दूसरी दृष्टि से कथंचित् वक्तव्य भी है । अर्थात् - वस्तु का वर्णन यदि उसके केवल अस्तिधर्मों को लेकर किया जाएगा, तो भी थोड़े से ही अस्तिधर्मों का कथन हो सकेगा, अवशिष्ट सब धर्म अवक्तव्य ही रहेंगे । इस अपेक्षा से 'स्याद् अस्ति अवक्तव्य' नामक पंचम भंग निष्पन्न हुआ । छठा भंग – वस्तु का वर्णन यदि उसके केवल नास्तिधर्मों को लेकर किया जाएगा, तो भी वह वर्णन अमुक नास्तिधर्मों का ही हो सकेगा। बाकी के सब नास्तिधर्म अवक्तव्य ही रहेंगे । इस अपेक्षा से 'स्वात् नास्ति अवक्तव्य' नामक छठा भंग निष्पन्न होता है । सप्तमभंग - यदि वस्तु के अस्तिधर्म और नास्तिधर्म दोनों प्रकार के धर्मों को लेकर वस्तु का वर्णन किया जाएगा तो उसके कुछ ही अस्तिधर्म और कुछ ही नास्तिधर्म कहे जा सकेंगे, शेष सब अस्ति नास्तिधर्म अवक्तव्य ही रहेंगे । इस अपेक्षा से 'स्यात् अस्ति नास्ति अवक्तव्य' नामक सप्तम भंग निष्पन्न हुआ । विचार करने पर प्रतीत होता है कि सप्तभंगी में मूल भंग तो तीन ही हैं- अस्ति, नास्ति, अवक्तव्य । अवशिष्ट चार भंग इन्हीं तीन के संयोग से बने हैं । भगवतीसूत्र में सप्तभंगी की विवेचना प्राप्त होती है ।' वस्तु के अनेक धर्म हैं। अतः वह अनेकान्त - अनेकधर्मात्मक कहलाती १ भगवतीसूत्र १२ । १०।४६६
SR No.002475
Book TitleJain Tattva Kalika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1982
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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