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________________ प्रमाण -नय-स्वरूप | २८१ गाय को देखकर हमने जाना कि यह गाय है । यह गाय का समग्र रूप से बोध हुआ । अतः यह प्रमाण का रूप है । किन्तु यह रक्तवर्ण गाय है, शरीर से पुष्ट है, दो बछड़ों वाली है, अच्छा दूध देती है, यह स्वभाव की अच्छी है । इन पाँच विषयों का ज्ञान नय से हुआ । नय की व्याख्या न्यायावतार टीका में नय की व्याख्या इस प्रकार की है - 'अनन्त - धर्मों के सम्बन्ध वाली वस्तु को अपने अभिप्रेत (अभीष्ट ) एक विशिष्ट धर्म की ओर जो ले जाय या विशिष्ट धर्म को प्राप्त कराए, वह नय है ।' एक सत्य के अनेक रूप होते हैं । अनेक रूपों की एकता और एक की अनेकरूपता ही सत्य है । उसकी व्याख्या का जो साधन है, वही नय है । एक हो वस्तु में विभिन्न अपेक्षाओं से विभिन्न धर्मों का अध्यास (सम्बन्ध ) है और ऐसी अपेक्षाएँ अनन्त हैं । फिर व्यक्ति सदा पदार्थ को एक ही दृष्टि से नहीं देखता । देश, काल और परिस्थितियों का परिवर्तन होने पर द्रष्टा की दृष्टि में परिवर्तन होता है । वक्ता का झुकाव वस्तु के अनन्त धर्मों में से जिस धर्म की ओर होगा, वह उस धर्म को मुख्य रूप से ग्रहण करेगा तथा शेष अंशों के सम्बन्ध में माध्यस्थ्यभाव ग्रहण करेगा । अर्थात् - वस्तु के अनेक अंशों से एक अंश को मुख्य और शेष अंशों को गौण रखना- उनके प्रति उदासीनता रखना, नय है । " नयवाद का रहस्य यह है सत्य के अनन्त धर्म होते हैं । अतः दूसरे व्यक्ति को कथन को भी उसकी अपेक्षा - अभिप्राय से सत्यप्रेमी के लिए अभीष्ट है । नय के प्रकार नय किसी भी एक अपेक्षा का अवलम्बन लेता है । वैसी अपेक्षा प्रत्येक व्यक्ति या प्रत्येक वचन के लिए पृथक्-पृथक् होती है । इसीलिए सन्मति तर्क में कहा है-. अनेकरूप होते हैं, वस्तु में भी सहसा झूठा न बताकर उसके समझने का प्रयत्न करना ही १ अनन्तधर्माध्यासितं वस्तु स्वाभिप्रेतेकधर्मविशिष्टं नयति--प्रापयति, संवेदनमारोतीति नयः । -न्यायावतार टीका २ नीयते येन श्रुताख्य प्रमाणविषयीकृतस्यांशस्तदितरांशीदासीनतः स प्रतिपत्तुरभि - पायविशेषा नयः । - प्र० न० त०
SR No.002475
Book TitleJain Tattva Kalika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1982
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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