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२७४ | जैनतत्त्वकलिका : अष्टम कलिका
पालन करने का अभ्यासी हो जाता है तो वह आगे बढ़कर प्रतिमा ग्रहण करता है । प्रतिमा का अर्थ है - दृढतापूर्वक नियम पालन । ये ११ हैं
(१) दर्शन प्रतिमा, (२) व्रतप्रतिमा, (३) सामायिक प्रतिमा ( ४ ) पौषध प्रतिमा, (५) नियम प्रतिमा, (६) ब्रह्मचर्य प्रतिमा, (७) सचित्त त्याग प्रतिमा, (८) आरम्भ त्याग प्रतिमा, (8) प्रेष्य परित्याग प्रतिभा, (१०) उद्दिष्ट त्याग प्रतिमा और (११) श्रमणभूत प्रतिमा ।
श्रावकों के जघन्य, मध्यम और उत्कृष्ट तीन भेद किये गये हैं, उनमें प्रतिमाधारी श्रावक उत्कृष्ट होते हैं । ये सभी मोक्षमार्ग के साधक और मोक्ष की ओर प्रति प्रगति करने वाले होते हैं ।
इस प्रकार श्रावक धर्म- अगारधर्म का सम्यक् रूप से पालन करके तथा जीवन के अन्त में संलेखना की साधना द्वारा श्रावक समाधिमरण करता है और अपने कर्मों के बन्धन को शिथिल करके, निर्जरा करता है । इस पथ पर बढ़ता हुआ एक दिन सम्पूर्ण कर्मों का क्षय करके मोक्ष प्राप्त कर लेता है ।