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गृहस्थधर्म-स्वरूप | २६६
सामायिकव्रत की सुरक्षा के लिए पाँच अतिचारों से बचना आवश्यक है
(१) मनोदुष्प्रणिधान-सामायिक में मन से बुरा चिन्तन, अशुभ या सांसारिक सावद्यकार्यों का चिन्तन करना, (२) वाग दुष्प्रणिधान-वाणी के प्रयोग का ध्यान न रखना, सावद्यभाषा बोलते रहना अथवा कठोर हिंसक वचन-प्रयोग करना अतिचार है । (३) कायदुष्प्रणिधान--सामायिक में काया को स्थिर न रखना, बार-बार चंचल बनाए रखना, काया से सावध प्रवृत्ति या चेष्टाएँ करना । (४) स्मृति-अकरण-सामायिककाल . या सामायिक साधना की स्मृति न रहना, क्या सामायिक का समय हो गया है ? मैंने सामायिक की है या नहीं ? इत्यादि विस्मृति अतिचार है। (५) अनवस्थितकरण --सामायिक का काल पूर्ण हुए बिना ही सामायिक पार लेना, अथवा न तो समय पर सामायिक करना और न ही उसके काल को पूर्ण करना । यह पाँचवाँ अतिचार है।' (२) देशावकाशिकवत
यह द्वितीय शिक्षाक्त है। वास्तव में यह व्रत छठे व्रत का ही अंश है। छठे व्रत में आजीवन छह दिशाओं में गमन का परिमाण किया जाता है, परन्तु इस व्रत में उसी परिमाण को संक्षिप्त-संकुचित किया जाता है।
__ जैसे-छठे व्रत में अमुक दिशा में जो क्षेत्र मर्यादा की है, उतनी दूर प्रतिदिन जाना नहीं होता, अतः प्रतिदिन जितनी दूर तक जाने का काम पड़ता हो, उतनी सीमा में क्षेत्र-परिमाण कर लेना, इस व्रत का उद्देश्य है।
ऐसा करने से परिमाण किये हुए क्षेत्र में उसका संवरभाव हो जाता है; तथा परिमाणकृत क्षेत्र से बाहर की कोई भी वस्तु मंगवाने व भेजने या खरीदने-बेचने आदि का तथा पंचास्रवसेवन का त्याग हो जाता है। इस प्रकार इच्छाओं का निरोध करने से आत्मिक शान्ति प्राप्त होती है।
देशावकाशिकव्रतधारी को निम्नोक्त पाँच अतिचारों का त्याग करना चाहिए - (१) आनयनप्रयोग आवश्यक कार्य पड़ने पर मर्यादित क्षेत्र से बाहर का कोई भी पदार्थ किसी से मंगवाना, यह प्रथम अतिचार (दोष) है। (२) प्रेष्यप्रयोग-मर्यादित क्षेत्र से बाहर के क्षेत्र में वस्तु को प्रेषित करना-भेजना
१ तयाणंतरं च णं सामाइयस्स समणोवासएणं पंच अइयारा जाणियव्वा, न समाय
रियव्वा, तं जहा-मणदुप्पणिहाणे वयदुप्पणिहाणे कायदुप्पणिहाणे सामाइयस्स सइ अकरणया सामाइयस्य
करणया।
-उपासक० अ० १