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विषय-सूची | ४३ चार सम्पन्न १७४, [२१] दर्शनाचार सम्पन्न १७५, [२२] चारित्राचार सम्पन्न १७५, [२३] तपाचार सम्पन्न १७५, [२४] वीर्याचार सम्पन्न १७६, [२५] आहरणनिपुण १७६, [२६] सूत्राथंतदुभयविधिज्ञ १७७, [२७] हेतु निपुण १७७, [२८] उपनयनिपुण १७७, [२६] नयनिपुण १७८, [३०] ग्राहणाकुशल १७८, [३१] स्वसमयविज्ञ १७८, [३२] परसमयविद् १७६, [३३] गाम्भीर्ययुक्त १७६, [३४] दीप्तिमान- तेजस्वी १७६, [३५] शिव १७६, [३६] सौम्यगुणयुत १८०, आचार्य में चार विशिष्ट क्रियाएँ १८० आचार्य की आठ सम्पदाएँ १८१, [१] आचार सम्पदा और उसके प्रकार १८१ [२] श्रुतसम्पदा और उसके भेद १८२, [३] शरीर सम्पदा और उसके भेद १८२, [४] वचन सम्पदा भेद सहित १८३, [५] वाचना सम्पदा और उसके विभिन्न भेद १८३, [६] मति सम्पदा प्रकार सहित १८४, [७] प्रयोग मति सम्पदा और उसके प्रकार १८६, [८] संग्रह परिज्ञा सम्पदा और उसके प्रकार १८७, आचार्यों द्वारा चतुर्विध विनय प्रतिपत्ति शिक्षा १८६, आचार विनयः स्वरूप और प्रकार १८६, श्रुत विनयः स्वरूप और प्रकार १६१, विक्षेपणविनयः ‘स्वरूप और प्रकार १६२, दोष निर्घानता-विनयः स्वरूप और प्रकार
१६३, आचार्य के प्रति शिष्यादि की विनय प्रतिपत्ति १९४, [१] उपकरण उत्पादना विनय १६४, [२] सहायता विनय १६५, [३] वर्ण संज्वलनताविनय १६६, [४]'भार प्रत्यारोहणता विनय १६६, प्रकारान्तर से आचार्य के छत्तीस गुण १६८, आचार्य को गुरुपद में प्रथम स्थान क्यों ? १९८ । उपाध्याय का सर्वांगीण स्वरूप
१६६-२१२ उपाध्याय पद की महिमा १६६, उपाध्याय का कर्तव्य २००, उपाध्याय पद की उपलब्धि २००, उपाध्याय के पच्चीस गुण २०१, द्वादश अंगशास्त्रों का परिचय २०२, द्वादश उपांगों का वर्णन २०४, करण सप्तति से युक्त २०६, चरणसप्तति से युक्त २०७, आठ प्रकार की प्रभावनाओं से सम्पन्न २०७, उपाध्याय की
सोलह उपमाएँ २०६, उपाध्यायजी की विशेषता २१२ । ६. साधु का सर्वांगीण स्वरुप
२१३-२६४ साधु का अर्थ और लक्षण २१२, साधु के पर्यायवाची शब्द और लक्षण २१५, [१] माहन २१६, श्रमण २१६, [२] भिक्षु २१७, (४) निर्ग्रन्थ २१७, पाँच कोटि के निर्ग्रन्थ २१८, पुलाकनिकन्य २१८, (२) बकुश निर्ग्रन्थ २१८, (३) कुशीलनिर्ग्रन्थ २१८ (४) निर्ग्रन्थ २१८, (५) स्नातकनिम्रन्थ २१६, साधु-धर्म के योग्य