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________________ कर्मवाद : एक मीमांसा | १४५ आत्मा नित्य है, तो वह जन्मता-मरता क्यों है ? विविध गतियों-योनियों में क्यों भटकता है ? अगर आत्मा ज्ञानस्वरूप है तो अज्ञानान्धकार में क्यों भटकता है ? यदि वह अमृत है तो विभिन्न मूर्त शरीरों में क्यों बद्ध हैं ?" इन सब प्रश्नों का समाधान यह है कि आत्मा का वास्तविक स्वरूप तो वही है, किन्तु विश्व में एक ऐसी अद्भुत शक्ति है, जो शुद्ध, ज्ञानस्वरूप और स्वतन्त्र आत्मा को विवश बनाकर नाना प्रकार के नाच नचा रही है । वही शक्ति जीवों को चार गतियों और चौरासी लाख योनियों में भटका रही है । उसी शक्ति के कारण संसार में इतनी विविधता, विचित्रता, विरूपता और विषमताएँ दृष्टिगोचर हो रही हैं । उस शक्ति को जैनदर्शन 'कर्म' कहता है । वेदान्तदर्शन में उसे माया या अविद्या, सांख्यदर्शन में प्रकृति, वैशेषिकदर्शन में अदृष्ट या संस्कार, किन्हीं दर्शनों में वासना, आशय, धर्माधर्म या अपूर्व आदि कहा गया है । कुछ धर्म या दर्शन उसे कर्म मानते हैं । किन्तु जैनदर्शन में कर्म का जैसा सांगोपांग, तर्कसंगत, अत्यन्त सूक्ष्म, व्यवस्थित, एवं विस्तार से विवेचन मिलता है, वैसा अन्यत्र नहीं मिलता है । जैनदर्शन में कर्मवाद पर बहुत ही गहराई से चिन्तन-मननपूर्वक विपुल साहित्य लिखा गया है ।" कर्मवाद एवं अन्य वाद यद्यपि जैनदर्शन के अतिरिक्त वैदिक एवं बौद्ध धर्मग्रन्थों में भी कर्म - सम्बन्धी विचार मिलते हैं । किन्तु उनमें कर्म और कर्मफल ( यथाकर्म तथाफल) का सामान्य निर्देश मात्र मिलता है । . अदृष्टवाद न्यायदर्शन में उसे अदृष्ट कहा गया है । अच्छे-बुरे कर्मों का संस्कार आत्मा पर पड़ता है, वही अदृष्ट है । अदृष्ट आत्मा के साथ तब तक रहता है, - आचारांग १।३।१ - पंचाध्यायी २५० १ (क) 'कम्मुणा उवाही जाय ' (ख) एको दरिद्र एको हि श्रीमानिति च कर्मणः । ( ग ) कम्मओ णं भंते! जीवे, नो अकम्मओ विभत्तिभावं परिणमई । हंता, गोयमा ! कम्मओ णं जीवे, णो अकम्मओ विभत्तिभावं परिणमई ।' - भगवती १२।१२० २ कर्मग्रन्थ, कम्मपयडी, शतक, पंचसंग्रह, सप्ततिका आदि श्वेताम्बराचार्यकृत ग्रन्थ तथा महाकर्मप्रकृतिप्राभृत ( षट्खण्डागम), कषायप्राभृत आदि दिगम्बराचार्यकृत ग्रन्थ पूर्वाद्धृत माने जाते हैं ।
SR No.002475
Book TitleJain Tattva Kalika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1982
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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