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________________ वाणी के जादूगर श्री अमरमुनि जी (संक्षिप्त परिचय) संस्कृत का एक प्राचीन श्लोक है शतेष जायते शूरः सहस्रष च पण्डितः । वक्ता दश सहस्रेषु दाता भवति वा न वा ॥. सैकड़ों मनुष्यों में कोई एक वीर' निकलता है, हजारों में कोई एक पंडित (विद्धान) मिलता है और दशहजार में कोई एक वक्ता मिलता है, दाता तो मिले या न भी मिले। ___ वक्ता वाग्देवता का प्रतिनिधि है, वक्ता को वाणी मुर्दो में प्राण फूक देती है, और पापियों को पुण्यात्मा बना देती है । वक्ता फिर अगर सन्त हो, वह भी भक्त हो, कवि हो तो फिर सोने में सुगन्ध या 'लाखों में कोई एक' की उक्ति चरितार्थ करता है। __प्रवचन भूषण श्री अमर मुनिजी महाराज इसी कोटि के सन्त वक्ता हैं। इनकी वाणी में एक प्रेरणा है, भावनाओं में तूफान मचा देने वाला जादू है। दानव को मानव और मानव को देवता बना देने वाली विलक्षण शक्ति है। वे समतायोगी संत है, आत्म-साधना करने वाले महान साधक हैं, प्रभुभक्ति में लीन रहने वाले भक्त हैं, और अन्तर जीवन का संगीत गुनगुनाने वाले सहज कवि हैं। आपका जन्म वि. सं. १९९३ भादवासुदि ५ तदनुसार ई. सन् १९३६ में क्वेटा (बिलोचिस्तान) के सम्पन्न मल्होत्रा परिवार में हुआ। आपके पिता श्री दीवान चन्दजी माता श्री बसन्तीदेवी बड़े ही उदार और प्रभुभक्त थे । भारत विभाजन के बाद आप अपने माता-पिता के साथ लुधियाना आ गये। वहाँ आपको दो ही वर्ष हुए होंगे कि आपने एक जैन साधु श्री मनोहर मुनिजी को दीक्षा लेते हुए देखा और तभी से आपकी आत्मा भी जागृत हो गयी। आयु चाहे आपकी बाल्यावस्था ही थी परन्तु अन्तःकरण में वैराग्य का दीप प्रज्ज्वलित हो चुका था। अतः आप ११ वर्ष की अवस्था में आचार्यश्री आत्मारामजी महाराज के चरणों में उपस्थित हुए और अपने विचार रखे। आचार्य श्री ने आपको अपनी दिव्य दृष्टि से देखा, कुछ पूछताछ हुई और आपका हाथआपके गुरुदेव नवयुग सुधारक जैन विभूषण श्री भण्डारी पदमचन्द जी महाराज को पकड़ा दिया।
SR No.002475
Book TitleJain Tattva Kalika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1982
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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