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६६ | जैन तत्त्वकलिका : चतुर्थ कलिका
इस प्रकार ३६ कालिक और २६ उत्कालिक सूत्र तथा एक आवश्यक मिलाकर कुल ६६ अंगबाह्य सूत्रों का उल्लेख है, इनमें से कई सत्र वर्तमान में उपलब्ध नहीं हैं । द्वादशवर्षीय दुष्काल के समय बहुत से शास्त्र विच्छिन्न हो गए।' यह सम्यक्श्रु त का विश्लेषण है ।
प्राचीन आगमों की भाषा में श्रुतज्ञान का अथ यही किया गया है कि जो ज्ञान श्रुत-आप्तपुरुषों द्वारा रचित आगम एवं अन्य शास्त्रों-से होता है।
(६) मिथ्याश्रुत-अपनी मनःकल्पना से असर्वज्ञ, अनाप्त पुरुषों द्वारा रचित, सर्वज्ञसिद्धान्तविपरीत, पूर्वापरविरुद्ध, हिंसादि पंचाश्रव विधान से पूर्ण एवं आत्मकल्याण के लिए असाधक, शास्त्रों द्वारा होने वाला ज्ञान। .
नन्दीसूत्र में मिथ्याश्रुत में परिगणित कुछ शास्त्रों के नामों का उल्लेख किया गया है। किन्तु सम्यग्दृष्टि के लिए ये ही मिथ्याश्रुत सम्यकप में परिणत होने के कारण सम्यक्श्रुत हो जाते हैं।
(७-८) सादिश्रुत एवं अनादिश्रुत-जिसकी आदि है वह सादिश्रुत तथा जिसकी आदि न हो, वह अनादिश्रुत है। श्रुत द्रव्यरूप से अनादि है और पर्यायरूप से सादि है।
(९-१०) सपर्यवसित-अपर्यवसितश्रुत--जिसका अन्त होता है, वह सपर्यवसित और जिसका अन्त न हो, वह अपर्यवसितश्र त ज्ञान है। यह श्रुत भी द्रव्य और पर्याय की दृष्टि से अनन्त और सान्त है।
(११-१२) गमिकश्रुत-अगमिकश्रुत--जिसमें सदृश पाठ हों, वह गमिक और जिसमें असदृशाक्षरालापक हों, वह अगमिक्श्रुत है।
नन्दीसूत्र में गमिक में दृष्टिवाद को और अगमिक में कालिक श्रत को बताया गया है।
१ श्वेताम्बर मू. पू. आम्नाय में वर्तमान में ४५ आगम माने जाते हैं जिनमें १२
अंगशास्त्र, १२ उपांगशास्त्र, ५ छेदसून (४ छेद पहले बताए गये हैं, पांचवाँ महानिशीथ है), ४ मूलसूत्र (आवश्यकसूत्र, दशवैकालिक, उत्तराध्ययन और ओघनियुक्ति) २ सूत्र (नन्दीसूत्र और अनुयोगद्वार) तथा १० प्रकीर्णक (चतु:शरण, आतुरप्रत्याख्यान, भक्तपरिज्ञा, संस्तारक, तन्दुलवैचारिक, चन्द्रवेध्यक, देवेन्द्रस्तव, गणिविद्या, महाप्रत्याख्यान और वीरस्तव) इस प्रकार कुल १२+ १२+५+४+२+१० = ४५ आगम ।
--सं० २ से किं तं गमियं ? गमियं दिठिवाओ।
से किं तं अगमियं ? अगमियं कालियंसुयं । -नन्दीसूत्र सू०४३ का प्रारम्भ