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________________ ३० | जैन तत्त्वकलिका : तृतीय कलिका गृहस्थों के लिए लौकिक धर्म के पालन की उपेक्षा करने से लोकोत्तर धर्म भी खतरे में पड़ जाएगा । लौकिक धर्म की उपेक्षा करने से गृहस्थ श्रावक भी लोकोत्तर धर्म का पालन ठीक से नहीं कर सकेगा, और न ही साधु वर्ग अपने साधुधर्म ( लोकोत्तर धर्म) का पालन ठीक से कर सकेगा । गृहस्थों का जीवन नीतिमय एवं पवित्र नहीं होगा तो साधु वर्ग का जीवन भी पवित्र रहना कठिन है । 'जैसा खाए अन्न, वैसा रहे मन' इस कहावत के अनुसार साधु को जिस ग्राम, नगर या राष्ट्र में रहना हो, वहाँ के निवासी अगर अधर्मी, चोर या अत्याचारी होंगे, तो उनका अन्न खाने वाला साधुवर्ग अपने विचार को शुद्ध एवं पवित्र कैसे रख सकेगा ? अधर्मी या अत्याचारी IT अन्न खाने से उसके विचारों का प्रतिबिम्ब साधु के मन पर पड़े बिना कैसे रह सकता है ? अतः स्त्र-पर-कल्याण-परायण साधुवर्ग को ग्रामधर्म आदि लौकिक-धर्मो से थोड़ा-बहुत सम्बन्ध रखना ही पड़ता है, फिर उन लौकिक धर्मों की तद्योग्यजनों को प्रेरणा देने से किनाराकसी करना कैसे उचित कहा जा सकता है। लौकिक धर्म की कसौटी हाँ, अगर लौकिक धर्मों के नाम से कहीं हिंसा, असत्य, अन्याय, अत्याचार या सम्यक्त्व को दूषित करने वाले आदेश निर्देश किये जा रहे हैं, तथा लौकिक धर्म-पालकों को उन प्रथाओं या रीति-रिवाजों का पालन करने के लिए बाध्य किया जा रहा हो, या उनका सम्यक्त्व नष्ट होने की सम्भाATT हो, वहाँ उस लौकिक विधि को लौकिक धर्म के नाम से मानना कथमपि उचित नहीं है, साधुओं को भी ऐसी स्थिति में उक्त भ्रान्त लौकिक धर्म को न मानने की प्रेरणा अपने अनुयायी गृहस्थवर्ग को देनी चाहिए । आचार्य सोमदेवसूरि ने लौकिक धर्म की स्पष्ट कसौटी बता दी है'जैनों के लिए वह समग्र लौकिक व्यवस्था प्रमाण है, जिसे मान्य करने पर सम्यक्त्व की किसी प्रकार से हानि न हो और अहिंसादि व्रत दूषित न हों । अतएव आत्मशद्धि और सिद्धि (मुक्ति) प्राप्त करने के उद्देश्य से शास्त्रकारों ने लौकिक और लोकोत्तर धर्मरूप दस प्रकार के धर्मों की योजना की है । १ सर्व एव हि जैनानां प्रमाणं लौकिको विधिः । यत्र सम्यक्त्वहानिर्न, न स्याद् ब्रतदूषणन् ।। - यशस्लिकचम्पू
SR No.002475
Book TitleJain Tattva Kalika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1982
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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