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साधु का सर्वांगीण स्वरूप : २२५
है ? अगर दिशाएँ निर्मल हों तो स्वाध्याय करे । तत्पश्चात् अस्वाध्याय की दिशा (लाल दिशा) हो, तब विधिपूर्वक शुद्धरूप से षडावश्यक युक्त' रात्रिक
महोत्सव हैं, तथा इन चारों के पश्चात् आने वाली प्रतिपदा महाप्रतिपदाएँ हैं, इन ८ में स्वाध्याय न करना ।) (२६-३२) प्रातः, मध्याह्न, सायं, अर्द्धरात्रि—ये चार सन्ध्याकाल हैं इन में दो घड़ी तक स्वाध्याय न करना। (ख) कोई आचार्य तारा टूटने पर तथा रात्रि को लाल दिशा रहे तब इन दो में भी एक प्रहर तक अस्वाध्याय मानते हैं । छह आवश्यक अन्य नामों के साथ इस प्रकार हैं-(१) सामायिक-- (सावद्ययोग विरति), (२) चतुविशतिस्तव (उत्कीर्तन), (३) वन्दना (गुरुवन्दना या गुणवत्प्रतिपत्ति, (४) प्रतिक्रमण (स्खलित निन्दना), (५) कायोत्सर्ग (व्रणचिकित्सा) और (६) प्रत्याख्यान (गुणधारण)। -- आवश्यकसूत्र तथा अनुयोग द्वार ।
छह आवश्यक का क्रम--(१) अन्तर्दष्टि वाले साधक का प्रधान उद्देश्य सामायिक करना है, जिसमें सावद्य-योगों से निवृत्ति-रूप समस्त व्यवहार के दर्शन हों; (२) समभाव की पूर्णता के शिखर पर पहुँचे हुए महापुरुषों के आदर्श को लक्ष्य में रखने हेतु उनका सभक्तिभाव गुणोत्कीर्तन करना; (३) समभाव स्थित ज्येष्ठ साधुओं को या गुरु को विनयपूर्वक वन्दना करना; (४) कदाचित् साधक समभाव से गिर जाए तो यथाविधि प्रतिक्रमण (आलोचना, निन्दना-पश्चात्ताप, गर्हणा, भावना एवं क्षमापना आदि) द्वारा अपनी पूर्वस्थिति में लौट आना; (५) प्रमादवश ज्ञान-दर्शन-चारित्ररूप सामायिक में जो कोई अतिचाररूप व्रण संयम-शरीर पर हुए हों, उन पापों-अतिचारों को द्रव्यभाव कायोत्सर्गध्यानरूप प्रायश्चित्त जल से शुद्ध करना, तथा अन्तर्मुख होकर शरीर के प्रति मोह-ममत्व का त्याग करके भेदविज्ञान द्वारा आत्म-शुद्धि के पथ पर पहुँचना; (६) तत्पश्चात् भविष्यकाल में अशुभयोग से निवृत्ति तथा शुभयोग में प्रवृत्ति के लिए द्रव्य से-अन्न-वस्त्रादि पदार्थों का, भाव से-अज्ञान, मिथ्यात्व, कषाय, असंयम आदि का त्याग-प्रत्याख्यान करना, ताकि उक्त तप-त्याग के रूप में प्रायश्चित्त द्वारा आत्मा की (आत्मा पर लगे हुए अतिचारों, दोषों की) शुद्धि हो।
ये छह क्रियाएँ साधु-साध्वियों के लिये अवश्य करणीय होने से इन्हें षट् आवश्यक कहा जाता है। वर्तमान युग के प्रत्येक साधु-साध्वी को देवसिक, रात्रिक, पाक्षिक, चातुर्मासिक, सांवत्सरिक आदि के रूप में इस षडावश्यक को यथासमय अवश्य करना चाहिये।