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________________ १३४ : जैन तत्त्वकलिका–द्वितीय कलिका हासविलास की बातें सुनने से काम विकार पैदा होता है, जो ब्रह्मचर्य के लिए घातक है । ब्रह्मचारी इससे बचना चाहिए।' (६) पूर्वभुक्त कामभोगों के स्मरण का निषेध-पूर्वभुक्त विषय-भोगो के स्मरण से ब्रह्मचारी को दूर रहना चाहिए, क्योंकि पूर्वावस्था में स्त्री के साथ किये हुए विषयभोगों का स्मरण करने से मानसिक अब्रह्म का सेवन होता है और उससे ब्रह्मचर्य का विनाश हो जाता है। . . (७) कामोत्तेजक भोजन-पान वर्जन- जैसे सन्निपात के रोगी के लिए दूध और शक्कर मिलाकर देना रोगवृद्धि का कारण होता है वसे ही ब्रह्मचारी के लिए सदैव सरस, स्वादिष्ट, तामसी, कामोत्तेजक भोजन और पेय भी ब्रह्मचर्य के लिए हानिकारक होते हैं। इनसे ब्रह्मचारी को बचना चाहिए। (८) अत्यधिक भोजन पान-वर्जन-जैसे सेर भर की हंडिया में सवासेर खिचड़ी पकाने से वह फूट जाती है, वैसे ही मर्यादा से अधिक ठूस-ठूसकर खाने से भी अजीर्ण, अतिसार आदि रोग उत्पन्न होते हैं और काम विकार में वृद्धि होने से स्वप्नदोष आदि हो जाते हैं, ब्रह्मचर्य नष्ट हो जाने की आशंका रहती है। इसलिए ब्रह्मचारी को अति भोजन से बचना चाहिए। (९) स्नान गार वर्जन-जैसे दरिद्र के पास चिन्तामणि रत्न टिक नहीं सकता, इसी प्रकार फैशन के लिए स्नान-शृगार, अंगमर्दन, उबटन, विभूषा आदि करके अपने शरीर को आकर्षक बनाने वाले व्यक्ति का ब्रह्मचर्य सुरक्षित नहीं रह सकता। इसलिए ब्रह्मचारी को शृंगार, विभूषा आदि से दूर रहना चाहिए; क्योंकि जो ब्रह्मचारी भिक्षु शरीर की विभूषा १ (क) आलओ थीजणाइण्णो, थीकहा य मणोरमा । संथवो चेव नारीणं, तासि इंदियदरिसणं ।। कुइयं रुइयं गीअं, हसियं भुत्तासणाणिय । -उत्तरा० अ० १६, गाथा ११, १२ (ख) न रूवलावण्णविलासहासन जंपियं इंमियपेहियं वा । इत्थीण चित्तंसि निवेसइत्ता दळुववस्से समणे तवस्सी ॥ अदंसणं चेव अपत्थण च, अचिंतणं चेव अकित्तण च । इत्थीजणस्सारियझाणजोग्गं हियं सया बंभवए रयाण ॥ -उत्तरा० अ० ३२ गाथा १४-१५
SR No.002475
Book TitleJain Tattva Kalika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1982
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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