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सम्पादकीय
काम-सुख और मोक्ष-सुख संसार में सभी प्राणी सुख के अभिलाषी हैं । यद्यपि सबकी सुख की कल्पना एक-सी नहीं है. तथापि विकास की तरतमता के अनुसार प्राणियों के सुख को दो वर्गों में विभक्त किया जा सकता है । पहले वर्ग में अल्पविकास वाले ऐसे प्राणी आते हैं, जिनके सुख की कल्पना इन्द्रिय-विषयों की प्राप्ति तथा अभीष्ट वस्तु-प्राप्ति पर निर्भर है। दूसरे वर्ग में अधिक विकास वाले ऐसे प्राणो आते हैं, जो बाह्य-भौतिक साधनों की प्राप्ति में सुख न मान कर आध्यात्मिक गुणों की प्राप्ति में सुख मानते हैं। इन दोनों वर्गों के माने हुए सुखों में से प्रथम सुख पराधीन है, जबकि दूसरा स्वाधीन सुख है । पराधीन सुख को काम और स्वाधीन सुख को मोक्ष कहते हैं।
___ संसार में अधिकांश प्राणी काम पुरुषार्थ पर चलने वाले हैं जो सुख के बदले दुःख, अशान्ति और बेचैनी पाते हैं। उनमें से जो जिज्ञासु व्यक्ति वास्तविक सुख की शोध में चलते हैं, तब उनके समक्ष दु:ख मुक्ति और स्वाधीन सुखप्राप्ति का प्रश्न मुख्य बन जाता है । ज्ञानी पुरुष उन्हें बताते हैं कि मोक्ष पुरुषार्थ करने से ही उपर्युक्त प्रश्न का हल निकल सकता है ।
मोक्षार्थी के मन में प्रश्न जिज्ञासु व्यक्ति ज्यों-ज्यों मोक्ष पुरुषार्थ को समझने लगता है, त्यों-त्यों उसके मन में नाना प्रकार के प्रश्न उभरते जाते हैं। मुख्यतया ये प्रश्न इस प्रकार के होते हैं
मैं कौन हूँ? इस गनुष्यलोक में कैसे और कहाँ-कहाँ से आया हूँ ? मेरे आस-पास जो जगत् व्याप्त है, उसमें जीवों की विविधता क्यों है ? क्यों यह जन्म-मरण रूप संसार दुःखरूप नहीं है ? इस दुःख से मुक्ति कैसे हो सकती है ? दुःखमुक्ति के इस मार्ग मे कौन-कौन मुख्य सहायक हो सकते हैं ? क्या मुझे भी मोक्ष प्राप्त हो सकता है ?'
ये और इस प्रकार के अन्य प्रश्न जिज्ञासु के मन में उथल पुथल मचा देते हैं । मन में प्रश्नों का घटाटोप होने के कारण व्यक्ति उलझन में पड़ जाता है। वह