________________
स्वकथ्य | ७
सो इस उद्देश्य को ही मुख्य रख कर इस ग्रन्थ की रचना की गई है। जहाँ तक हो सका है, इस विषय की पूर्ति करने में विशेष चेष्टा की गई है। जिसका पाठकगण पढ़कर स्वयं ही अनुभव कर लेंगे क्योंकि, देव-गुरु-धर्मादि विषयों का स्वरूप स्पष्ट रूप से लिखा गया है, जो प्रत्येक आस्तिक के मनन करने योग्य है । और साथ ही जीवादि तत्वों का स्वरूप भी जैन आगम ग्रन्थों के मल सूत्रों के मूलपाठ वा मूलसूत्रों के आधार से लिखा गया है, जो प्रत्येक जन के लिये पठनीय है ।
आशा है, पाठकगण इस के स्वाध्याय से अवश्य ही लाभ उठा कर मोक्षाधिकारी बनेंगे । अलम् विद्वत्सु ।
भवदीय उपाध्याय जैनमुनि आत्माराम