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२७ अनित्य एवं दुःखमय संसार में मत फंसो!
मनुष्य संसार में क्यों आया है ?
धर्मप्रेमी श्रोताजनो!
मनुष्य जब से इस संसार में आता है, तब से उसके समक्ष कई प्रश्नचिन्ह लग जाते हैं । वह कुछ सयाना होकर सोचता है-यह दिखाई देने वाला संसार क्या है ? ये प्राणी कौन हैं जो मेरो परवरिश करते हैं, मुझे पालते-पोसते हैं ? दूसरे प्राणियों के साथ मेरा क्या रिश्ता-नाता है ? इनका तथा संसार के दूसरे पदार्थों का स्वरूप क्या है ? क्या यह संसार सदा से ऐसा ही है, ऐसा ही रहेगा, या इसमें परिवर्तन होता रहता है ? इत्यादि प्रश्नों का उत्तर अधिकांश लोग उलटा-सीधा, तर्क-युक्तिहीन पाते हैं। वे जिस धर्मसम्प्रदाय, मत या जाति, राष्ट्र, प्रान्त आदि के सम्पर्क में आते हैं, जैसा संस्कार या वातावरण पाते हैं, तदनुसार अपना मत या मान्यता बना लेते हैं । बहुत-से लोगों को इस संसार के सम्बन्ध में सही अता-पता नहीं मिलता। ऐसे लोग संसार के वस्तुस्वरूप से अनभिज्ञ होकर मोह-ममत्ववश उन्हीं-उन्हीं गतियों और योनियों में पुनः पुनः परिभ्रमण करते रहते हैं। जो बोधिप्राप्त विज्ञ लोग होते हैं, वे संसार के सही स्वरूप को समझ लेते हैं, वे इस में रहते हुए भी इससे तथा इसके विविध प्रपंच से अलिप्त-अनासक्त रहकर इसमें जन्म-मरणरूप आवागमन को कम कर देते हैं या धीरेधीरे इसमें सर्वथा मुक्त, पृथक् हो जाते हैं । अर्हतर्षि को संसार के वास्तविक स्वरूप का बोध
हरिगिरि नामक अर्हतर्षि को ऋषि जीवन स्वीकार करने से पूर्व और पश्चात् संसार के वास्तविक स्वरूप का जो बोध प्राप्त हुआ, उसे इस चौबीसवें अध्ययन में वे प्रस्तुत कर रहे हैं