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मृत्यु का रहस्य ६७ सफल है, उसकी मृत्यु भो सफल है; जिसका जीवन असफल है, उसकी मृत्यु भी असफल है।
__मृत्युकलाविद् यह भी जानते हैं कि मृत्यु दोनों प्रकार के व्यक्तियों को आने वाली है। जो जीवन में पापकर्म करता है, असदाचारी है, उसकी भी मृत्यु होने वाली है, और सत्य, शील, अहिंसा आदि धर्मों की आराधना करने वाले की भी । जैसा कि 'आतुर-प्रत्याख्यान' नामक शास्त्र में कहा है
धीरेणं वि मरियव्वं, काउरिसेण वि अवस्स मरियव्वं । दुण्हं पि हु मरियव्वे, वरं खु धीरत्तणे मरिउं । सीलेण वि मरियव्वं, निस्सीलेण वि अवस्स मरियव्वं ।
दुण्हं पि हु मरियव्वे, वरं खु सीलतणे मरिउं ॥
'धीर पुरुष को भी मरना है और कायर पुरुष को भी अवश्य मरना । है, जब दोनों को एक न एक दिन अवश्य मरना है, तब धीरतापूर्वक मरना
ही श्रेष्ठ है। शोल के आराधक को भी मरना है और शीलरहित जीवन वाले को भी मरना है । जब दोनों को अवश्य मरना है, तब शील की आराधना करते हुए मरना ही श्रेष्ठ है।' उर्दू का एक शायर भी इसी का समर्थन करता है
मरने से मफर नहीं है, जब अय अकबर ।
बेहतर तो यही है, खुशी से मरना सीख लो ।। यही कारण है कि मत्युकलामर्मज्ञ अपने जीवन में हिंसा झूठ, फरेब, ठगी, धोखाधड़ी, चोरी, डकैती, व्यभिचार, मद्य मांस सेवन आदि पापाचरणों से सदा दूर रहता है, क्योंकि वह मृत्यु को हर समय अपने सामने देखता है । वह मृत्यु को प्रतिक्षण याद रखता है। सुखरूप मृत्यु के लिए यह भी एक आसान उपाय है। सन्त एकनाथ के जीवन की एक घटना से इस तथ्य को समझा हूँ।
सन्त एकनाथ से एक बार किसी ने विनयपूर्वक पूछा-"महात्मन् ! आपका जीवन इतना शान्त, निश्चिन्त और निष्पाप है, जबकि हमारा जीवन काम-क्रोधादि में ग्रस्त, अशान्त. चिन्तायुक्त एवं पापों से भरा है, क्या आप कोई उपाय बतायेगे, जिससे हम भी आपके समान ही अपना जीवन बना सके।" सन्त एकनाथ - "उपाय तो बाद में बताऊँगा। पहले तुम यह समझ लो