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मृत्यु का रहस्य
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बालमरण के अन्य कारण
ऐसा व्यक्ति मृत्यु के समय घबराता है, उसकी घबराहट एवं अशान्ति के तीन कारण - (१) मृत्यु की पूर्व तैयारी का अभाव, (२) अशुद्ध लेश्या एव (३) राग-द्वेषादि की गाँठ तो मैं पहले बता चुका हूँ ।
चौथा कारण है - देहासक्ति । शरीर पर अत्यधिक मोह के कारण वह चाहता है, यह शरीर न छूटे ।
पाँचवाँ कारण है - इस जन्म से सम्बन्धित कुटुम्बी, सम्बन्धी, प्रेमी, मित्र, साथी. ज्ञातिजन आदि के प्रति गाढ़ आसक्ति के कारण उनसे वियोग असह्य लगता है ।
छटा कारण है - धन-सम्पत्ति, जमीन-जायदाद, मिल्कियत आदि प जो गाढ़ ममत्वभाव है, उनके छूट जाने के भय से वह दुःखी होता है ।
सातवाँ कारण है -- जीवन में अनेक दुष्कर्म; पाप एवं अनाचार सेवन किये। इस कारण परलोक में दुर्गति और उसमें मिलने वाली यातनाओं का विचार करके वह अत्यन्त दुःखी हो जाता है ।
आठवाँ कारण - अपनी प्रतिष्ठा जो उसने जीवन काल में धन या सत्ता के बल पर अर्जित की है, वह मरने के बाद मिट जाएगी, क्योंकि सत्कार्य करके लोक हृदय में स्थान प्राप्त नहीं किया ।
यही कारण है कि रामपुत्र अर्हतषि अपने गृहस्थ जीवन में ही अन्तर्बोध पाकर अपने भावी जीवन को उज्ज्वल बनाना चाहते हैं । इसी दृष्टि से वे दुःखरूप मरण और उसके कारणों को तिलांजलि देकर तथा ऋषिजीवन में दीक्षित होकर अपनी मृत्यु को सफल बनाने के लिए उद्यत हुए हैं ।
पण्डितमरण यानी सुखरूप मृत्यु के प्रेरणासूत्र
मैंने पहले कहा था कि जिसकी पूर्व तैयारी अच्छी होती है; उसे मृत्यु के समय कोई पश्चात्ताप दुख या कष्ट नहीं होता । वह शान्तिपूर्वक मरता है । मृत्यु को वह परीक्षाकाल, जिन्दगी का तलपट अथवा मित्र समझता है ।
आपका कोई वस्त्र जीर्ण-शीर्ण हो जाए और आपके बिना कहे ही यदि कोई नया वस्त्र पहना दे तो आपको कितनी प्रसन्नता होती है ? क्या आप उसे अपना उपकारी नहीं मानेगे ? अवश्य ही मानेंगे। इसी प्रकार मृत्यु भी पुराने जीर्ण-शीर्ण शरीर को छुड़ाकर उसके बदले नया सुन्दर शरीर देती है । इसीलिए मृत्युकलामर्मज्ञ मृत्यु को मित्र एवं उपकारी मानते हैं भगवद्गीता में कहा गया है
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