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________________ ५४ अमरदीप ईश्वर की सन्तान हैं। ऊँच-नीच के भेदभाव तो हमने अपनी सुविधा के लिए बना लिये हैं । सेवा में यह ऊँच-नीच का भाव नहीं होना चाहिए।' देवी की इस बात पर अंग्रेज संचालिका ने उसे प्रसूतिगृह से सेवामुक्त कर दिया। देवी अब तक आत्मनिर्भर हो चुकी थी। सेवाभाव हृदय में बसा हुआ था। अत: अपने भाई के सहयोग से स्वयं ५-६ पलंग खरीद कर एक छोटा-सा प्रसूति गृह खोल दिया। वह बहुत परिश्रम, लगन और सेवाभाव से कार्य करने लगी। धीरे-धीरे उसकी प्रसिद्धि चारों ओर फैलने लगी । उसकी उत्कृष्ट सेवाभावना देख लोग उसे देवीमाई' के नाम से सम्बोधित करने लगे। कुछ वर्षों बाद उस प्रसूतिगृह की गणना उत्कृष्ट अस्पतालों में होने लगी। उसकी ख्याति सुनकर भू. पू. प्रसूतिगृह की अंग्रेज संचालिका स्वयं उस प्रसूतिगृह को देखने आई । उसे पता नहीं था कि 'देवीमाई' वही नर्स है, जिसे तिरस्कृत करके उसने अस्पताल से निकाल दिया था । देवीमाई ने उसे अपने यहाँ आया देखकर आश्चर्यसहित हार्दिक स्वागत किया और स्वयं उसे अपना सारा अस्पताल दिखाया। अपनी सारी आत्मकथा भी नम्रतापूर्वक कह सुनाई । अंग्रेज महिला उसके सद्व्यवहार, सेवाभाव और रुग्ण महिलाओं के प्रति सहानुभूति से बहुत प्रभावित हुई और उससे कहा- 'मैंने तुम्हें अपने अस्पताल से निकाल कर बहुत बड़ा अपराध किया है, इसके लिए मैं क्षमाप्रार्थी हूं।" फिर उसने एक सादे कागज पर लिख दिया -- "मैं अपनी सारी सम्पत्ति देवीमाई की सेवाओं के प्रति अपनी विनम्र श्रद्धांजलि के रूप में देवीमाई अस्पताल को समर्पित करती हूं।" और उस अंग्रेज महिला ने देवीमाई को अपने हृदय से लगा लिया। यह है भारतीय नारी का सद्गुण सम्पन्न जीवन चित्र । अब देखिए, असंस्कारी, अशिक्षित एवं दुष्ट स्वभाव की नारी का जीवनचित्र अर्हतर्षि दगभाली के शब्दों में उच्छायणं कुलाणं तु, दवहीणाण लाघवो । पतिट्ठा सव्वदुषखाणं, गिट्टाणं अज्जियाण य ।।५।। गेहं वेराणं गंभीरं, विग्यो सद्धम्मचारिणं । दुट्ठासो अखलोणं व, लोके सूता कि मंगणा ।।६।। अर्थात्- असंस्कारी नारी कुलों का उच्छेदन करती है, उनकी प्रतिष्ठा समाप्त करती है । और दीन-दुर्बलों (द्रव्य हीनों) का अनादर करती है। यह
SR No.002474
Book TitleAmardeep Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1986
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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