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________________ नारी : नागिनी या नारायणी ५३ 'सर्वसहत्वं माधुर्यमार्जवं सुस्त्रियां गुणाः ' सन्नारियों में ये तीन गुण मुख्य रूप से होते हैं—- सहिष्णुता, मधुरता और सरलता । सन्नारी का सबसे बड़ा गुण यह है कि वह पृथ्वी की तरह सर्व सहा है । पृथ्वी पर कोई गन्दगी करता है, कोई उसे खोदता है, कोई उस पर अणु बम के धड़ाके करता है, तो भी वह मौन होकर सब कुछ सहन करती है । पेड़-पौधे, फल-फूल सबको जीवनदायिनी धरती माता है । भारतीय नारी IT भी यही स्वभाव है । कविरत्नजी के शब्दों में देखिए भारत की नारी एक दिन देवी कहलाती थी । संसार में सब ठौर आदर मान पाती थी ॥ ध्रुव ॥ वनवास में श्रीराम के साथ में सीता, हाँ साथ में । महलों के वैभव को घृणा करके ठुकराती थी ॥१॥ चित्तौड़ में यवनों से अपने सत की रक्षा को । हँस-हँस के अग्निज्वाला में सबही जल जाती थी ॥२॥ पत्नी श्री मण्डनमिश्र की शास्त्रार्थ करने में । आचार्य शंकर जैसों के छक्के छुड़वाती थी ||३ | यह था भारतीय नारी का गौरव । ऋषि दगभाली के शब्दों में वह स्वगुणों के प्रकाश में यथार्थ नारी थी । भारतीय नारी की गुणगाथा का एक उदाहरण हम यहां प्रस्तुत करते हैं नासिक में देवी नाम की एक महिला थी । युवावस्था में ही उसके पति का देहान्त हो गया । ससुराल और पीहर में केवल एक भाई के सिवाय सब लोग उससे घृणा करने लगे। देवी के भाई ने उसे धैर्य बँधाया और नर्स की ट्रेनिंग के लिए उसे एक स्कूल में भर्ती करा दिया। नर्स की ट्रेनिंग पूर्ण कर छोटे से प्रसूतिगृह में उसने सर्विस कर ली। उस प्रसूतिगृह की संचालिका एक अंग्रेज महिला थी । एक बार एक निम्न वर्ग की महिला उस प्रसूतिगृह में प्रविष्ट हुई । रात को उसके पेट में अचानक बहुत दर्द होने लगा । वह शौचालय तक जाने स्थिति में नहीं थी । वहाँ के नियमानुसार शौच क्रिया के लिए कमोड केवल अंग्र ेज रुग्ण महिलाओं के लिए ही उपलब्ध हो सकता था । देवी ने उस गरीब ग्रामीण महिला के शौच के लिए कमोड रखवा दिया। इस पर वह अंग्रेज महिला (संचालिका) देवी पर बहुत नाराज हुई, तथा कई कड़वी बात भी सुनाईं। उत्तर में दयामयी देवी ने यही कहा - " हम सब एक ही
SR No.002474
Book TitleAmardeep Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1986
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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