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________________ नारी : नागिनी या नारायणी ५१ भी वह पैसे के गज से नापती है। क्या आपने नहीं सुना कि एक धनाढ्य बहन ने अपने घर आये गरीब भाई को अपने पीहर का नौकर बताकर उसका अपमान किया, परन्तु जब वह धन कमाकर वस्त्राभूषणों से सुसज्जित होकर उसके घर पहुंचा तो उसी बहन ने बहुत ही आवभगत की । यह नारी की स्वार्थी एवं संकीर्ण मनोवृत्ति का परिचायक है। जिस नारी का क्षद्रस्वभाव होता है, वह पारिवारिकजनों की हत्या करने में भी नहीं हिचकिचाती। जो स्त्री व्यभिचारिणो है, कुलटा है, वह अपने पति और पुत्र को भी मार देती है। ऐसी कई घटनाएँ संसार में घटती रहती हैं। आये दिन अखबारों में भी पढ़ते हैं और इतिहास में भी। चूलनी रानी अपने प्रिय पुत्र ब्रह्मदत्त को लाक्षागृह में भेजकर आग लगाकर भस्म करने को उतारू हो गई थी। इस प्रकार की दुष्ट स्वभाव की नारी समाज, परिवार और देश की शान्ति को स्वाहा कर देती है। सुन्दर स्वभाव की सरल एवं कोमलहृदय नारी घर को स्वर्ग बना देती है । वह देवो कहलातो है । वह अपसे त्याग और तप से दुर्व्यसनी और दुराचारी पति को भी व्यसनमुक्त एवं सदाचारी बनाने में सक्षम होती है; जबकि दुष्टस्वभाव की दुरूप स्त्री कलह और प्रपंच करके घर को नरक बना डालती है । वह घर की आर्यता और पवित्रता को समाप्त कर देती हैं। 'सुभाषितरत्नभाण्डागार' में ऐसी कुनारी का लक्षण इस प्रकार दिया वाचाला कलहप्रिया कुटिलधी क्रोधान्विता निर्दया, मूर्खा मर्मविभाषिणो च कृपणा मायायुता लोभिनी। भर्तु क्रोधकरा कलंक-कलिता स्वात्मम्भरी सर्वदा, दूरूपा गुरु-देव-भक्ति-विकला भार्या भवेत् पापतः ॥ अर्था-वाचाल, कलहकारिणी, कुटिलबुद्धि, क्रोध करने वाली, निर्दय, मूर्ख, मर्म की बात प्रगट करने वाली, कृपण, कपटो, लोभी, पति पर क्रोध करने वाली, कलकित, सदैव अपना उदर भरने में तत्पर, कुरूप, देव और गुरु की भक्ति से शून्य, ऐसी कुभार्या पाप के उदय से मिलती है। ऐसी स्त्री कभी-कभी परिवार में गम्भीर वैर के बीज या फूट के बीज बो देती है। धर्मरत आत्माओं की शान्ति में वह विघ्नभूत भी बनती है। जैसेधर्मनिष्ठ प्रदेशी राजा को अपने तुच्छ विषयसुख में रुकावट पड़ने के कारण सूरिकान्ता रानी ने विष देकर मार डाला था। अतः ऐसी अनार्य नारी के हृदय में प्रतिहिंसा की भावना जागृत हो जाती है तो वह दुष्ट अश्व की भाँति बलवतो होकर बदला लेने पर उतारू हो जाती है।
SR No.002474
Book TitleAmardeep Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1986
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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