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अमरदीप
इसका तात्पर्य यह है कि जैसे बीज में विराट् वृक्ष समाया रहता है, तथैव शरीर में गांठ पृथ्वी में वनस्पति, कुआ आदि में पानी तथा अरणी अग्नि समाई रहती है. इसी प्रकार ग्रामधर्म अर्थात् विषयवासना भी मानव के मन में छिपी रहती है ।
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कहा जाता है कि बालक निष्पाप होता है; यह ठीक है, क्योंकि उसके मन में उस समय किसी प्रकार की वासना या विकार नहीं होता। लेकिन वासना के बीज तो उसमें मौजूद रहते हैं । वे ही बीज समय पाकर विशाल रूप ले लेते हैं । वह वयस्क होता है, तब उसकी सोयी हुई कामवासना जागृत हो जाती है | अतः साधक, चाहे पुरुषप्रवर या पुरुषज्येष्ठ आदि क्यों न हो, उसके मन में कामवासना (ग्रामधर्म) छिपी रहती है । अनुकूल संयोग या कामवासना के प्रबल निमित्त ( कामिनी) को पाकर जागृत हो सकती है । जहाँ स्त्री और वासना का एकाधिपत्य: वहाँ पतन निश्चित
यही कारण है कि अर्ह तर्षि दगभाली इसी दृष्टि से कामवासना की प्रबल निमित्तभूत नारी से साधक को सावधान करते हुए कहते हैंवित्तसिं गाम-णगराणं, जेसि महिला पणायि । ते याविधिकिया पुरिसा, जे इत्थिणं वसं गता ॥ १ ॥
अर्थात् - वे ग्राम और नगर धिक्कार के पात्र हैं, जहाँ नारी नायिका पुरुष भी धिक्कार के पात्र हैं, जो नारी के वशीभूत हो जाते हैं ।
वे
वास्तव में, जो देश स्त्रियों का गुलाम है, जहाँ सुरा और सुन्दरी का बोलबाला है वह देश निश्चय ही धिक्कार का पात्र है । उसका पतन निश्चित है । जहाँ स्त्री अपने रूप-यौवन को बेचकर पुरुषों को प्रसन्न करती है, उनको अपने इशारों पर नचाती है, वह देश भी पतन और विनाश की ओर चला जाता है । जहाँ के जनजीवन में वासना के दौर चलते हैं, जहाँ जन मानस पर गणिकाओं और नगरवधुओं का शासन है, जहाँ दुराचारिणी स्त्रियाँ ही समाज में नेत्री हैं, अग्रणी हैं वहाँ के निवासी या उस समाज के लोग शीघ्र ही पतन और दुःख के गर्त में गिर जाते हैं । अज्ञान और मोह उन्हें घेर लेते हैं । वासनाओं के शिकार बनकर वे मानवीय जीवन से गिरकर पाशवीय और दानवीय जीवन बिताने लगते हैं ।
प्रसिद्ध लेखक ' गिब्बन ने रोम का इतिहास लिखा है । उसने सारे ग्रन्थ का निचोड़ अन्त में दिया है - रोम का उत्थान सादगी से हुआ और पतन हुआ विलासिता एव कामवासना की वृद्धि से । रोम का इतिहास कहता है कि एक बार रोम में वासना इतनी अधिक बढ़ गई कि वहाँ का भक्त