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________________ नारी : नागिनी या नारायणी साधक समाज में रहता है, वह अन्न पानी, वस्त्र पात्र तथा अन्य उपकरणादि समाज से प्राप्त करता है। उसके सम्पर्क में गृहस्थ स्त्री और पुरुष दोनों आते हैं । ऐसे समय में वह राग-द्वेष एवं मोह के वशीभूत हो जाए तो कर्मों से लिप्त हो सकता है । साधक का लक्ष्य कर्मों से सर्वथा मुक्त होना है । इसलिए यहाँ कहा गया है कि साधक जागृत ( प्रबुद्ध रहकर ) कर्मों से लिप्त होने से बचे | समाज के बीच रहते हुए भी तथा समाज से सम्पर्क रखते हुए भी उनसे जलकमलवत् निर्लेप रहे, निरासक्त, निःस्पृह और निरीह रहे । ४७ पुरुषादि में रहा हुआ ग्रामधर्म जिस प्रकार आत्मधर्म का आचरण कर्मों को क्षय करने में उपयोगी उसी प्रकार ग्रामधर्म ( अर्थात् - पंचेइसी तथ्य को प्रकट करने के लिए है और वह साधकपुरुष में रहता है, (न्द्रियविषयाभिलाषा) भी रहता है, अर्हतषि दगभाली कहते है पुरिसादीया धम्मा, पुरिसपवरा, पुरिसजेट्ठा पुरिसकप्पिया पुरिसपज्जोविता पुरिससमण्णागता पुरिसमेव अभिउ जियागं चिट्ठति । से जहा णामते आरती सिया सरीरंसि जाता, सरीरंसि वड्ढिया, सरीरसमण्णागता सरीरं चेव अभिउ जियाण चिट्ठति । एवमेव धम्मा वि पुरिसादीया जाव चिट्ठन्ति । अर्थात् पुरुषादि का धर्म है । वह पुरुष - प्रवर, पुरुषज्येष्ठ, पुरुष - कल्पिक, पुरुष-प्रद्योतित एवं पुरुषसमन्वागत पुरुषों को ही आकर्षित करके रहता है । जिस प्रकार शरीर में उत्पन्न हुई गांठ (फोड़ा) शरीर में ही पैदा होती है, शरीर में ही बढ़ती है, शरीर में समन्वागत और आकर्षित होकर शरीर में ही टिकी रहती है, वैसे हो ये ग्रामधर्म (इन्द्रियविषय) भी पुरुषादि पुरुष - प्रवर आदि ( विशेषणयुक्त) साधकों में निहित रहते हैं । और आगे भी देखिये, दगभाली ऋषि के कथन का भावार्थ इस प्रकार "इसी प्रकार जैसे गांठ कंदमूल जैसी वनस्पति), बल्मीक ( दीमक ), स्तूप, वृक्ष एवं वनखण्ड पृथ्वी में पैदा होते हैं, पृथ्वी से ही रक्षण पाते हैं और पृथ्व से वृद्धि पाते हैं । तथा उदक पुष्करिणी ( बावड़ी ) कुआ आदि ( की उत्पत्ति, रक्षा और वृद्धि) भी पानी से सम्बन्धित है । तथा अग्नि अरणी में पैदा होती है, अरणी का सहारा लेकर रहती है, इसी प्रकार धर्मइन्द्रियविषयरूप ग्राम धर्म भी पुरुषादि के आश्रित रहता है ।"
SR No.002474
Book TitleAmardeep Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1986
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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