SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 71
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नारी : नागिनी या नारायणी ४५. 'यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते, रमन्ते तत्र देवता ।' जहाँ स्त्रियाँ पूजनीय मानी जाती हैं, वहाँ देवता भी क्रीड़ा करते हैं । भारतीय संस्कृति में विद्या के लिए सरस्वती की, धन के लिए लक्ष्मी की और शक्ति के लिए दुर्गा की उपासना करने की पद्धति प्रचलित है। विद्या, सम्पत्ति और शक्ति स्त्री (देवी) पूजा से प्राप्त होती है। इनमें से किसी भी वस्तु की प्राप्ति के लिए किसी देव या पुरुष की कोई पूजा नहीं करता। इसका मुख्य कारण यह है कि नारी जाति में स्वभावतः कोमलता, दया, वत्सलता और करुणा होती है। वह स्नेह, सेवा और सहिष्णुता की मूर्ति होती है। मातृजाति में सबसे बड़ा गुण त्याग और सहिष्णुता का है। जिस कार्य को पुरुष घृणित समझता है; बच्चों की गन्दगी उठाने, तथा मलमूत्र धोने जैसे उस कष्टकर कार्य को स्त्रीजाति हर्षपूर्वक करती है। वह कभी ऐसे सेवा के कार्य से नाक-भौं नहीं सिकोड़ती। भगवान् ऋषभदेव युगादि तीर्थंकर होने से ब्रह्मा माने जाते हैं। उनकी पुत्री 'ब्राह्मी' ने ब्राह्मीलिपि का और 'सुन्दरी ने गणितविद्या का प्रथम अध्ययन करके संसार में प्रचार किया था। इस प्रकार स्त्रीजाति ने ही मानव को शिक्षित और विद्वान . बनाया है। नेपोलियन बोनापार्ट को वीर और योद्धा बनाने वाली उसकी माता ही थी। इसलिए नारियाँ जगज्जननी का अवतार हैं। इन्हीं की कूख से महावीर, बुद्ध, राम, कृष्ण, गाँधी आदि उत्पन्न हुए हैं। इन महापुरुषों ने माता के उत्तम गुणों, और संस्कारों को प्राप्त करके महानता प्राप्त की है। यों भी देखा जाए तो नारी ने अपने त्याग, सहिष्णुता, क्षमा, उदारता, वीरता और अहिंसा आदि अनेक गुणों से इस संसार को मृत्यु के मुख से बचाया है । नारीजाति ने निराश और हताश बने हुए पुरुषों को हिम्मत दी है। नीरसता में भी सरसता उत्पन्न की है। कठोर कर्तव्यपालन में धर्म से विचलित होते हुए पुरुषों में भी नारीजाति ने वीरता, त्याग, वैराग्य और संयम के प्राण फूके हैं। __ भारत के भूतपूर्व प्रधानमन्त्री पं० जवाहरलाल नेहरू ने एक बार बहनों की सभा में भाषण देते हुए कहा था-"हिन्दुस्तान के जख्मी हृदयों का इलाज स्त्रियाँ ही कर सकती हैं।" टूटे हुए दिलों को मिलाने, कठोर कर्तव्यपालन में सहयोगी बनने में नारियाँ कभी पीछे नहीं रही हैं । सन्त विनोबा ने भी विश्व में अहिंसा के प्रचार के लिए नारीजाति को ही पसन्द
SR No.002474
Book TitleAmardeep Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1986
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy