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________________ ४४ अमरदीप बल को और संगम से वीर्य को ग्रस लेती है। अतः नारी पुरुष के लिए प्रत्यक्ष राक्षसी है। शंकराचार्य ने अपनी प्रश्नोत्तरी में कहा है द्वारं किमेकं नरकस्य ?–नारी।' नरक का एकमात्र द्वार कौन-सा है ?-नारी। इसी प्रकार कामवासना से साधक को विरक्त करने के लिए जैन शास्त्रों में भी जगह-जगह कामवासना की प्रमुख उत्तेजनादात्री नारी से सावधान रहने के लिए निर्देश किया है। सूत्रकृतांगसूत्र (३।४।१६) में कहा है जहा नई वेतरणी, दुत्तरा इह संमय । एवं लोगंमि नारीओ, दुत्तरा य नई मया ॥ जिस प्रकार नरक की वैतरणी नदी को पार करना दुस्तर माना गया है, उसी प्रकार लोक में नारी-रूपी नदियाँ भी दुस्तर मानी गई है। _ 'इत्थीवसंगया बाला, जिणसासण-परंमुहा।' स्त्रियों के वशीभूत होने वाले अज्ञानी साधक जिनशासन से विमुख हो जाते हैं। _ 'वज्जए इत्थी, विसलित्त व कंटगं नच्चा।' विष-लिप्त कांटे के समान जानकर स्त्रियों से दूर रहना चाहिए। बन्धुओ ! यह सब कथन स्त्रियों के प्रति पुरुष के वासनामूलक आकर्षण को घटाने के लिए ही हैं। साधक कहीं वासना के दलदल में फँस न जाए, इसलिए उसे सावधान करने हेतु उत्तराध्ययनसूत्र (२।१७) में कहा है ___'पंकभूमाओ इथिओ।' • स्त्रियाँ कीचड़ के समान हैं, (साधक को उसमें फँसना नहीं चाहिए।) - नारीजाति का उज्ज्वलपक्ष दूसरी ओर इन्हीं शास्त्रों में नारी की महिमा का गुणगान किया गया है। उन्हें 'देवगुरुजणणीसंकासा' देवता, गुरु और माता के समान बताया गया है। नारी नारायणी', 'जगज्जननी', 'महाशक्ति', 'वात्सल्यमयी' आदि अनेक सम्मानसूचक पदों से नारी को अलंकृत किया गया है । कवियों ने भी कहा है
SR No.002474
Book TitleAmardeep Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1986
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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