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________________ २५ नारी : नागिनी या नारायणी ! आत्मविकास में सर्वाधिक बाधक : कामवासना धर्मप्रेमी श्रोताजनो ! आज मैं संयम साधना में बन्धन और आत्मोत्थान एवं आत्मगुणों के विकास में बाधक कुछ तथ्यों के बारे में आपके समक्ष विश्लेषण करना चाहता हूँ। मुक्ति का लक्ष्य बनाकर चलने वाले साधु के जीवन में यदि कोई भी कठिनतम वस्तु है तो वह है कामवासना को रोकना, ब्रह्मचर्य का पालन करना, कामविकार से युद्ध करना; क्योंकि जो साधक कामवासना से पराजित हो जाता है, वह आत्म विकास के मार्ग में आगे नहीं बढ़ सकता, उसका ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप सभी फीके - हो जाते हैं । इसलिए क्या साधु क्या गृहस्थ श्रावक, सभी को जीवन में साधना में प्रगति करने में सबसे अधिक ध्यान इसी वस्तु पर देना चाहिए, प्रगति बाधक इन तत्वों को दूर करना चाहिए । कामवासना का प्रबल निमित्त : नारी यों तो स्त्री और पुरुष - प्रकृति के मुख्य घटक हैं, किन्तु संसार में पुरुष की अपेक्षा नारी को कुछ अधिक 'सहज सुकुमारता सुन्दरता प्राप्त है। इसलिए पुरुषों के लिए वह एक आकर्षण का कारण भी बन जाता है, अतः पुरुषों की दृष्टि में नारी को कामवासना का सबसे प्रबल निमित्त माना जाता है । नारी का आकर्षण कामवासना को उद्दोप्त करता है और साधक यदि उससे न सँभले तो उसकी की कराई सारी साधना चौपट हो जाती है । प्राचीन कवियों ने साधक को सावधान करने के लिए कहा है दर्शनाद्धरते चित्त, स्पर्शनात् ग्रसते बलम् । संगमाद् ग्रसते वीर्यं, नारी प्रत्यक्ष राक्षसी ॥ अर्थात् - नारी दर्शन से ( पुरुष के ) मन को खींचती है, स्पर्श से
SR No.002474
Book TitleAmardeep Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1986
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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