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________________ अन्धकार से प्रकाश की ओर ३७ पाश्चात्य देशों के इतिहास में वर्णन है कि मैक्सिका में प्रतिवर्ष वहाँ के देवता के आगे बीस हजार मनुष्यों की बलि चढ़ती है। देवता नर-रक्त चाहते हैं, ऐसा अन्धविश्वास वहाँ प्रचलित है। भारतवर्ष में भी प्राचीनकाल में कई प्रान्तों में भैंसों, बकरों आदि की बलि दी जाती थी तथा नरबलि देने का भी रिवाज बहुत विचित्र था। एक रणक्षेत्र चुना जाता था। उस में युद्ध बंदी बनाए हुए सैनिकों को.आपस में लड़ाया जाता था। दर्शकों का हर्षनाद, जयनाद और तालियों की गड़गड़ाहट होती । जो प्रतिद्वन्द्वी हार जाता घटनास्थल पर ही उसके निर्दयतापूर्वक टुकड़े-टुकड़े करके देवता को उसकी बलि दे दी जाती थी। इन रोमहर्षक पापों की प्रेरणा देने वाला कौन है ? मैं कहूँगा, ये तमाम पाप अज्ञानमूलक हैं। वीतरागदेव ने अज्ञान को सबसे बड़ा पाप बताया है। पाप तो दुःख को ही निमंत्रण देता है। उससे आप सुख चाहें तो स्वप्न में भी नहीं मिल सकता। .. जंगल में निर्भय विचरण करने वाला मृग शिकारी की बंशी की मधुर तान सुनाता है तो अज्ञानवश विमोहित होकर दौड़ता हुआ वहाँ चला आता है। संगीत की स्वरलहरी पर वह मुग्ध हो जाता है । संगीत में लोन मग के शरीर को शिकारी के बाण बींध डालते हैं। आकाश में स्वच्छन्द विचरण करने वाला पक्षी दाने को देखकर धरती पर उतरता है। उतरते ही वह अन्नकण के लोभ में आकर बहेलिये के द्वारा बिछाये हुए जाल में फंस जाता है, फिर उसे पकड़ कर या तो किसी मांसाहारी को बेच दिया जाता है या पिंजरे में कैद कर दिया जाता है । विशालकाय गजराज कागज की हस्तिनी को देखकर उसके मोह में दौड़ता हुआ आकर गहरे गड्ढे में गिर जाता है। सात दिन तक उसे भूखा-प्यासा रखा जाता है. उसके दांत उखाड़ लिये जाते हैं, साथ ही उसे सांकलों से बाँध दिया जाता है । इस प्रकार कामवासना के प्रलोभन में पड़कर हाथी दुख पाता है। __और अब देखिए उस भोली-भाली जल विहारिणी मछली का हाल । वह आटे की गोली खाने के लोभ में पानी से बाहर मुह निकाल कर आती है। आटे की गोली खाते ही उसके पीछे छिपा हुआ तीखा लोहे का कांटा उसके कंठ को बींध डालता है। बस, वहीं उसका प्राणान्त हो जाता है।
SR No.002474
Book TitleAmardeep Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1986
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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