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२८ अमरदीप
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प्रेरित नहीं होता; किन्तु रात्रि के शान्त, एकान्त वातावरण में ज्ञान आत्मा का कोना-कोना प्रकाशित कर देता है। यह भौतिक ज्ञान, ज्ञानाभास है सम्यग्ज्ञान नहीं
बहुत से लोग कहते हैं- 'आजकल तो ज्ञान पहले की अपेक्षा बहुत बढ़ गया है। वर्तमान पीढ़ी पूर्वजों की अपेक्षा ज्ञान-विज्ञान में बहुत आगे है, वह भूगोल, खगोल, इतिहास, समाजशास्त्र, मनोविज्ञान, भौतिक विज्ञान, गणित आदि प्रत्येक क्षेत्र में ज्ञान-विज्ञान में पारंगत है, जबकि पूर्वज बहुत कम पढ़े-लिखे होते थे, बड़े बड़े पोथे वे पढ़ते ही कहाँ थे ?'
परन्तु यह एक ऐसी भ्रान्ति है, जो मनुष्य को अपने-पराये का भेदज्ञान होने नहीं देती। आज जितना भी शिक्षण है, वह सब भौतिक ज्ञान है, इससे बाह्य पदार्थों का ज्ञान अवश्य होता है, परन्तु इससे आत्मा का कितना सम्बन्ध है, वह कितना उपयोगी है, आत्मगुणों को प्रकाशित करने में ? यह विचारणीय है। आज का प्रायः सभी भौतिक ज्ञान आत्मा को जानने-पहचानने में अपने आपका बोध करने में, उसकी शक्तियों और निजगुणों की पहचान कराने में बिलकुल निरुपयोगी साबित हुआ है।
__ आज का विज्ञान उस शीशे की तरह है जिसमें सब दुनिया का दिल तो देखा जाता है. मगर अपना दिल नहीं दीखता।
एक व्यक्ति किसी महात्मा के पास आया, बोला -महाराज़ ! आपने बड़ी साधना की है, बहुत-सी सिद्धियां प्राप्त की हैं, कृपाकर मुझे भी कोई ऐसी चीज दीजिए जिससे मैं दूसरों के दिल की बात जान सकूँ।
महात्मा ने उसे एक शीशा दे दिया। कहा- यह मंत्र बोलकर जब शीशा किसी के सामने करेगा तो उसके दिल का सब हाल तुझे साफ दिखाई देने लगेगा।
वह व्यक्ति शीशा लेकर अपने घर आया। सबसे पहले सामने पत्नी आई। उसी के सामने शीशा किया तो देखा - उसके दिल में तो किसी दूसरे के प्रति लगाव है। वह अपने पति को तो मन ही मन गालियाँ देती रहती है और उसके बारे में बुरा-भला सोचती रहती हैं। पत्नी के दिल का हाल देखकर उसका माथा चकरा गया। उसने अपने बड़े बेटे की तरफ शीशा किया तो वह भी बाप से नफरत करता है, बाप को तो वह निरा बुद्ध और निठल्ला मान रहा है। फिर मित्रों, रिश्तेदारों को देखा । परिणाम यह हुआ कि सभी के दिलों में बुराई, घृणा और लालच भरा हुआ है । वह तो घबरा गया, और दौड़कर आया बाबा के पास, बोला -बाबा ! मैं तो पागल हो गया हूँ, सभी के दिलों में क्रोध