________________
अन्धकार से प्रकाश की ओर ! २७ लोभ, मोह आदि विभाव हैं, उन्हें अपने मानकर अपनाता रहता है । आज बड़े-बड़े मान्धाता, सत्ताधीश धनपति, परिवार, समाज समुदाय या राष्ट्र आदि उस अन्धकार में इधर-उधर भटक रहे हैं, परायों को अपने और अपनों को पराये समझ रहे हैं। प्रायः सभी आज उस प्रकाश के बिना बुरी स्थिति में है।
'तमसो मा ज्योतिर्गमय' की प्रार्थना ___ साधक छोटा हो या बड़ा, गृहस्थ हो या साधु, स्त्री हो या पुरुष, अगर वह साधक है, साधना के पथ पर अग्रसर है तो इसे इस आन्तरिक अन्धकार से दूर करने और उस प्रकाश को पाने की छटपटाहट होनी चाहिए और सच्चे साधक में प्रकाश को पाने की यह तीव्रता होती है । इसीलिए हजारों वर्ष पूर्व होने वाले भारतीय साधकों ने प्रभु के समक्ष खड़े होकर अपने हृदय को भावना व्यक्त को-प्रभो ! हमें धन, वैभव, ऐश्वर्य, सुखभोग आदि कुछ भी नहीं चाहिए, न ही हमें साम्राज्य चाहिए, न उच्चपद और प्रतिष्ठा चाहिए। ये तो इस जीवन के खिलौने हैं, जिन्हें हमने कई बार प्राप्त किये हैं और छोड़े भी हैं। हम क्या चाहिए ?
__ तमसो मा ज्योतिर्गमय' _ 'प्रभो ! हमें तू अन्धकार से प्रकाश की ओर ले चल !'
हमारे अन्तरात्मा पर पड़े इस घोर अन्धकार से हमें छुटकारा पाना है और महाप्रकाश को प्राप्त करना है । आप हमें बल दें।
अज्ञान ही वह आन्तरिक अन्धकार है क्या आप बता सकते हैं, अन्तर् का वह अन्धकार कौन सा है और प्रकाश क्या है ? चीन के महान् सन्त कन्फ्युशियस कहते हैं
Ignorance is night of the mind, but a night without moon and stars.
___ -- अज्ञान मन की अंधेरी रात है; ऐसी रात्रि जिसमें न तो चन्द्रमा है, न ही तारे हैं।
अज्ञान ही वह घोर अन्धकार है, जिसमें चांद और तारों का जरा-सा भी प्रकाश नहीं है, और ज्ञान ही वह महाप्रकाश है, जो सूर्य के प्रकाश से कई गुना बढ़कर है । सूर्य तो केवल दिन में ही प्रकाश करता है, किन्तु ज्ञान रात को भी दिन की भांति आत्मा में प्रकाश करता है। बल्कि कभी-कभी तो ज्ञान दिन की अपेक्षा रात्रि में अधिक प्रकाश देता है, क्योंकि दिन में तो अनेक प्रवृत्तियों में मन उलझा होता है, वह निश्चयात्मक ज्ञान पाने के लिए