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________________ अन्धकार से प्रकाश की ओर अन्दर का अंधेरा : कितना गहन, कितना सघन ? धर्मप्रेमी श्रोताजनो ! रात्रि का गहरा अन्धकार हो, जब सूर्य दूर छिप गया हो, अमावस्या की काली अंधेरी रात हो, उस अन्धकार का लाभ उठाकर अगर उस समय घर में कोई चोर या कोई गैर आदमो आ जाए और वह घर में घुसकर घर की चीजें उठाने लगे। उस समय जरा-सी खड़खड़ाहट से घर के मालिक या किसी भी सदस्य की नींद उड़ जाए तो वह सबको सावधान करने के लिए आवाज लगाता है – 'उठो, उठो, चोर आ गया। घर में घुस गया है।' यह सुनकर घर के सभी समझदार सदस्य आ जाते हैं। चोर चालाकी से घर में एक कोने में दुबक कर खड़ा हो जाए, तब घर वाले ही उस घोर अन्धकार में एक-दूसरे को चोर समझ कर परस्पर एक दूसरे पर लाठी प्रहार करने लगते हैं। उस समय गहन अंधकार में पता ही नहीं लगता कि कौन अपना है, कौन पराया है ? जब बाहर का अन्धकार ही इतना खतरनाक है, कि उसमें अपने-पराये का भेद मालूम नहीं पड़ता । किससे प्यार करना है, किस पर प्रहार करना है, इसका भान नहीं रहता, दुश्मनों पर पड़ने वाली मार दोस्तों पर पड़नी शुरू हो जाती है। इतना जबरदस्त प्रभाव जब वाहर के अन्धकार का है, तो भीतर का अन्धकार जो बाहर के अन्धकार से हजार गुना भयंकर है, कितना अधिक खतरनाक, हानिकारक एव प्रभावशाली होगा ? अन्दर के अन्धकार से हमारा मतलब है-हृदय, बुद्धि और आत्मा का अन्धकार । अगर वह अन्धेरा साधक के अन्तःकरण में प्रविष्ट हो जाता है तो उसकी हालत भी बहुत बुरी हो जाती है. वह भी स्व और पर का भेद उस अन्धकार के कारण नहीं समझ पाता। यह प्रकाश के अभाव में आत्मा के वास्तविक गुणों को दूर धकेल देता है और जो परभाव हैं-काम, क्रोध,
SR No.002474
Book TitleAmardeep Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1986
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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